तीन मार्च का दिन भावनाओं के कितने -कितने रंगों में रंगकर गुज़रा | दिल को दहलाने वाला दिन , संध्या होते -होते - भारतीय क्रिकेट -टीम की न्यूजीलैंड पर विजय की प्रसन्नता के दीयों के प्रकाश से नया संदेश दे गया |
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सूरज को छिपा सके ये ताब किसमें थी ? कब थी ?
साज़िश तो बहुत हवाओं नें बादलों से मिल के की |
तहज़ीब से , लिहाज़ से , उस खिर्दमंद नें - ,
जो भी कहा ,जितना कहा - ये उसका ज़र्फ़ था |
ग़ैरो का हो या अपना वतन - फ़र्क उससे क्या ?
हर दौर में रौनके -बज़्मे -जहाँ तो सिर्फ़ अंदलीब ही रहा |
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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