जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

******* श्रावन शुक्ला सप्तमी तुलसी धरया सरीर *******



बहुजन-हिताय और बहुजन–सुखाय के आदर्श को चरितार्थ करते रामराज्य को ,जीवन के सत्य और सौंदर्य को लोककल्याण के शिव-तत्व से परिपुष्ट कर , जन-जन तक पहुँचाने का लोकोपकारी कार्य जिन कविकुल शिरोमणि की लेखनी नें किया– उन्ही संत तुलसीदास जी की जयंती आज है। प्रयाग के निकट बाँदा ज़िले के राजापुर ग्राम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण परिवार में ; संवत १५५४ के श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ । यह कथा लोकविश्रुत है कि अमंगल की आशंका से पिता आत्माराम दूबे और माता हुलसी द्वारा इस अबोध शिशु का परित्याग कर दिया गया। “ होइ है सोई जो राम रचि राखा , को करि तरक बढ़ावहिं साखा॥ ” को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले संत के लिए शायद - अपनों का यह परित्याग ; सांसारिक बंधनों से मुक्ति और परमसत्ता के प्रति अडिग आस्था का सबसे पहला पाठ था । बालक रामबोला, स्वामी नरहरि जी से विद्या प्राप्त कर तुलसीदास बन गए । विदूषी पत्नी के अतिमोह से ग्रसित पति को कहे गए ,प्रभु–भक्ति और अनासक्ति भरे वाक्य- ‘ तुम्हारी जितनी आसक्ति मेरे हाड़- मांस के शरीर में है उससे आधी भी अगर भगवान में होती तो तुम्हारा बेड़ा पार हो जाता ।’ नें एक साधारण गृहस्थ को मानवीय संवेदनाओं और आध्यात्मिक पराकाष्ठाओं का कुशल चितेरा संत-कवि बना दिया । संत-कवि भी ऐसा जिसने समाज को ,राष्ट्र को ,व्यक्ति को ,समष्टि को ,प्राणिमात्र को ऐसे मानवीय मूल्य दिए जो देश ,काल और समय की सीमाओं से परे हैं और वेद-उपनिषदों के ज्ञाता जनकवि नें इसके लिए आधार बनाया लोकभाषा को “ भाषाबद्ध करब मैं सोई , मोरे मन प्रबोद्ध जेहिं होई॥” - - “ कीरति भनीति भूति भलि सोई , सुरसरि सम सब कहँ हित होई ॥” संत तुलसी दास का यह आदर्श मुझे वर्तमान – भविष्य – सबके लिए सामयिक लगता हैं ।संत चूड़ामणि तुलसीदास जी की जयंती पर मैं उन्हें काव्याँजलि अर्पित करती हूँ - -
• * * * * * *
आदि-कवि वाल्मीकि की रामायण के पुरुषोत्तम थे राम ,
भाषा–कवि तुलसी की लेखनी से घर-घर पहुँचा वो नाम ॥
शब्दों औ’ भावों की गहनता छू जाती सबके मन- प्रान ,
सुख में–दु:ख में तब से अब तक सब कहते राम–हे राम !!
काम-काज के बीच सुनाई देते दोहे-चौपाई सुबह औ शाम ,
”सठ सन विनय कुटिल सन प्रीति”समझे तो बने हमारे काम ।।
“का वर्षा जब कृषि सुखाने” कह-कह कर मेघों को पुकारें ग्राम,
रचा-बसा है भारत के मन –प्राणों में संत तुलसीदास का नाम ॥
*******

कोई टिप्पणी नहीं: