जाड़ों का मौसम

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मनभावन सुबह

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गुरुवार, 3 सितंबर 2009

******* पिछले दिनों *******

एक अजीब सी बेबसी और बेचारगी के कोहरे से घिरा हुआ पाया पिछले दिनों हमने अपने आप को । इतना बेबस-जितना लगभग डेढ़ दशक पहले अपने को होने वाले कैंसर के डॉक्टरों द्वारा खुलासे के समय हुए थे । दिमाग़ की सारी नसों को गहरे सन्नाटे की बर्फ़ीली पर्तें जैसे सुन्न कर गई थीं । जीवन के सुखों-दुखों को भरपूर जीते-जीते यह सीखा है कि - अपनें साथ घटने वाली हर त्रासदी को सहना अपेक्षाकृ्त आसान होता है पर अपनों के साथ अनहोनी घटे तो उसे सह पाना बहुत ही मुश्किल होता है - फिर यदि कुछ अवाँछित उसके साथ घट जाए जो ;आपके जीने का एकमात्र आधार हो,जिसके इर्द-गिर्द आपकी नश्वर साँसों नें अपनी सारी कल्पनाओं के सत्य होने की आशाओं को पिरोया हो - जो आपका सबसे आत्मीय,अंतरंग साथी हो - तो उस चोट को सह पाना दुष्कर हो जाता है । अप्रत्याशित घटती घटनाओं को ना तो हम टाल सकते हैं ना ही कुछ कर सकते हैं -परन्तु - सबका मूक साक्षी बन ,अपने साथी का हाथ थाम कर ,बालों में उँगलियाँ फिरा कर ,दो मीठे बोल बोलकर -उसे आश्वस्त तो कर सकते हैं कि इन कठिनतम क्षणों में हम साथ-साथ हैं - -ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं ये भी नहीं कर पा रही हूँ ।
हिन्द-महासागर और अरब-सागर वाले अपने देश भारत की राजधानी दिल्ली के अपने घर से मैं सचमुच सात समन्दर दूर हूँ प्रशान्त-महासागर के किनारे वेनकुवर (केनेडा)में । अगस्त माह में जब मैं दिल्ली से वेनकुवर के लिए चली तो अनिलजी और हमारे वैवाहिक जीवन में ये मेरी पहली लम्बी एकाकी यात्रा थी । विशिष्ट पारिवारिक कारणों से मेरा यहाँ बच्चों के पास आना आवश्यक था । अनिलजी की कार्यालयी व्यस्तताओं के चलते अकेले यात्रा का कठिन फ़ैसला लेना पड़ा था परन्तु यह इतना कठिन नही था जितना कठिन यह समय है - रविवार को हम भारत से चले और बुधवार की सुबह "अनिलजी अस्पताल में हैं " -की ख़बर छोटे बेटे और भाभी नें काफ़ी घुमा-फिरा कर -हमें "अब ठीक हें" की तसल्ली देते हुए दी । हमें मंगलवार की रात के अपने स्वप्न में दिखा दृष्य सच लगने लगा । हम जानते थे इस दूरी पर पूरा सच हमें घर से कोई नहीं बताएगा क्योंकि सब को हमारे स्वास्थ्य की चिन्ता ज़्यादा रहती है। पूरे सच नें हमारे दु:स्वप्न की पुष्टि कर दी -डॉ अमित गुप्ता नें।(डॉ अमित गुप्ता दिल्ली एम्स के जयप्रकाश ट्रॉमा सैंटर में सहायक आचार्य (सर्जरी)हैं और हमारे परिवार के लिए असल में देवदूत हैं)डॉ अमित नें बताया कि अनिलजी एमरजैंसी में हैं, उन्हे एन्जाईना-स्ट्रोक हुआ था - हृदय-रोग-चिकित्सक के गहन निरीक्षण में हैं और अब चिन्ता की कोई बात न्हीं वे ठीक हैं ।डॉ अमित का परिवार-जनों के साथ होना मेरे लिए बड़ी राहत की बात है परन्तु अपने वहाँ ना होने की पीड़ा अपनी जगह है ।
पिछले दिनों एक गहरा शून्य हमें घेरे रहा -अलकापुरी से उज्जैन निष्कासित किए गए यक्ष की वेदना को महाकवि कालिदास की लेखनी नें वाणी दी पर हमारी अपनी ही लेखनी असहाय सी दूर पड़ी रही । हाँ , यक्ष को अपनी पीड़ा की पाती मेघदूत के हाथों भेजनी पड़ी -वो हमारी तरह सौभाग्यशाली नहीं था क्योंकि हम रोज़ अस्पताल में अनिलजी के जागने पर फ़ोन से और अब घर आने पर ,यहाँ और वहाँ से -पूरा परिवार -इन्टरनैट पर अपने सुख-दु:ख बाँट लेता हैं । हमारे बीच रात और दिन का अन्तराल है (लगभग ग्यारह घंटों का अंतर है)पर डॉक्टरों की सलाह से घर पर स्वास्थ्य-लाभ कर रहे अपने प्रिय सखा से दोनों वक्त की बातचीत नें दूरियों को समेट कर इतनी तसल्ली दी है कि अपनी उपेक्षित सखी - लेखनी को भी समय देना संभव हुआ है । हाँ अनिलजी मेरे ब्लॉग -" देवगीत " की प्रेरणा भी हैं -पाठक ,प्रशंसक ,आलोचक भी -इसलिए भी लिखने की बाध्यता भी है । बीस अगस्त को लिखी पँक्तियों के बिना यह लेख अधूरा रहेगा उन्हें नीचे लिख रही हूँ :--

******* वक्त की बेरहम साज़िश *******
मेरे अंतरंग सखा - -मेरे मन के मीत ;
सच है कि इन्तज़ार की विरासत हमें मिली ।
पर कभी -कभी जगह बदल के देख तो सकते थे तुम !!
सदियों से भारी दिन यादों के सहारे गुज़ारे हमने ।
खुशियो के महकते रतजगे चुपचाप निहार तो सकते थे तुम !!
दर्द की राह् जिसे धकेल दिया वो दिल तुम्हारा था ही कब ।
अमानत मेरी थी इसे सहेज कर बचा भी तो सकते थे तुम !!
हँस-हँस के हमें सात समन्दर पार भेजने वाले ।
जज़ीरे पे दो दिन बिता ना पाओगे.बता तो सकते थे तुम !!
चमकते चेहरों की भीड़ में फिर सन्नाटों नें हमको घेरा है ।
वक्त की बेरहम इस साज़िश को, बेनक़ाब कर सकते हो सिर्फ़ तुम !!
- - ओ मेरे अंतरंग सखा - सिर्फ़ तुम !!
- -ओ मेरे मन के मीत - सिर्फ़ तुम!!

1 टिप्पणी:

Anil Kumar Dubey ने कहा…

un bitey hua palo me jab me bahut akala tha tab bhi me akala na tha tum mere sath ak sambal ban kar khadi thi aur ab to tumahari is lekhani ne to mujey jine ka maksad de diya tum isi tarah likhti raho apaney us dev ke liye