प्रातर्नमामि गिरिशं - गिरिजार्द्धदेहं सर्गस्थिति - प्रलय - कारणमादिदेव् |
विश्वेश्वरं- विजित - विश्वमनोsभिरामं संसार-रोग-हरमौषधमद्वितीयम् ||
भगवती पार्वती जिनके आधे अंग में विराजमान हैं |जो विश्व के सृजन,स्थिति और प्रलय के कारण हैं ;आदिदेव हैं ,विश्वनाथ हैं , विश्व-विजयी और सबके हृदय को प्रसन्नता देने वाले हैं | जो सांसारिक रोगों को नष्ट करने वाले अद्वितीय औषध रूप हैं -उन गिरीश को मैं प्रात:काल नमस्कार करती हूँ ||
महाशिवरात्रि हर बार मेरे सामने जीवन के नए अर्थ उजागर करने लगती है | इस बार न जाने क्यों यह पावन पर्व , नारी जाति के प्रति भारतीय चिन्तन से जोड़ गया | आज के समाज के नारी के प्रति उभरते तानाशाही रवैये से मैं आहत हूँ | बालिका भ्रूण-हत्या से लेकर- स्त्रियों के साथ उम्र के हर कदम पर होने वाले शारीरिक,मानसिक और भावनात्मक शोषण व अपराधों की खबरें मेरे भारतीयता के गर्व को लहूलुहान कर देती हैं |अगर इस विषय पर लिखने बैठ गई तो आज के दिन - -भगवान शंकर का दिन - दिन नही रात्री बीत जाएगी |
हम सब इस सत्य से बखूबी परिचित हैं कि शिव के प्रति - पूरे भारत में ; फिर चाहे वों साधारण-क्षेत्र हो ,वन-क्षेत्र हो या गिरी-क्षेत्र - -पूर्व ,पश्चिम ,उत्तर ,दक्षिण का कोई भी प्रदेश हो - सभी स्थानों के लोगों में भोलेभंडारी पर अपार श्रद्धा -भाव के दर्शन होते हैं | मैं हिमाचल प्रदेश की उपत्यकाओं में बसे एक गाँव की बेटी हूँ इस कारण उमा -महेश्वर के चरित्र से हर क्षण प्रेरणा ग्रहण करना , कब मेरे स्वभाव का अंग बन गया ये मैं नही जानती | हाँ ! बूढ़ा-देव ,शंभू ,विषपायी ,आशुतोष , आदि सहस्रों नामों से पुकारे जाने वाले महादेव ने अर्द्धनारीश्वर का रूप बिना किसी कारण धारण किया होगा ऐसा मैं नही मान सकती | मानव -जाति को परिवार और समाज के उत्तरदायित्वों के प्रति जागरूक करता है उनका प्रत्येक स्वरूप | परम्परा से उन्हें मानव - समाज की सुन्दरतम इकाई " परिवार " के संस्थापक के रूप में मानती आई हूँ इसलिए उनके इस स्वरूप में मुझे, विश्व के किसी भी पति द्वारा पत्नी को दिया गया सर्वश्रेष्ठ सम्मान दिखाई देता है |
ना चरणों में ना शीश पर -बस एक बराबरी के स्तर पर नाप-तोल कर गढ़ा गया संबंध है ये | बराबरी भी ऐसी कि कोई दूरी नहीं- अपने ही अस्तित्व के समान दूसरे को मानने के साहस को दर्शाती बराबरी है ये | मानना भी ऐसा कि वामांग ; जिसमें शरीर में निरंतर प्राण भरने वाला हृदय स्थित है ,वहीं अपनी अर्द्धांगिनी को स्थान दे दिया | नहीं जानती आज कितने परिवार - इस रीति ,प्राचीनतम भारतीय पद्धति का अनुसरण करना उचित मानते हैं - परन्तु ये जानती हूँ कि शिवरात्रि का पर्व आज भी बहुत से लोग इस विश्वास से मनाते हैं कि शिव सा पति और पार्वती सी पत्नी प्राप्त हो - मेरा विश्वासी मन कहता है कि - महाशिवरात्रि को,गौरी-शंकर से वरदानों की कामना करने वाले लोग; मंगलकारी भगवान शिव के संदेश को समझ कर, शीघ्र ही चेतेंगे और नारी को, उसकी समग्र शक्ति को - पहचान कर एक स्वस्थ-समभाव से परिपूर्ण मानसिकता का विकास करेंगे| महाशिवरात्रि की सभी को हार्दिक मंगल कामनाएँ *************||
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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