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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

दत्तात्रेय की जयंती

कल की पूर्णिमा अर्थात मार्गशीर्ष की पूर्णिमा स्वामी दत्तात्रेय की जयंती के रूप में मनाई जाती है | दत्तात्रेय जिनके माता-पिता ; सती-अनसूया और महर्षि अत्रि सप्तऋषि मंडल के तेजोदीप्त तारों में दमकने वाले एकमात्र युगल हैं |स्वामी दत्तात्रेय का जीवन मुझे सदा प्रेरणा देता रहा है कि जीवन की पाठशाला में सीखे गये सबक ही जीवन भर साथ निभाते हैं | वैदिक युग के इस महायोगी ने अपने समय में ही बता दिया था कि अपने अनुभवों से सहेजा गया ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है |
वन में घूमते हुए राजा यदु नें, पीपल के पेड़ के नीचे प्रसन्न भाव से बैठे दत्तात्रेय से जब, आनन्द का पाठ पढ़ाने वाले उनके गुरू का पता बताने का आग्रह किया था तब सद्गुणों की प्रतिमूर्ति दत्तात्रेय जी ने सरल भाव से कहा था , "मेरी आत्मा ही मेरा गुरू है परन्तु 'पन्द्रह अन्य' भी ज्ञानवर्द्धन में मेरे सहायक रहे हैं |" राजा यदु के पूछने पर उन्होंने अपने 'पन्द्रह-ज्ञानदाताओं' और उनसे प्राप्त ज्ञान का परिचय दिया था जो इस प्रकार है  :--
१} पृथ्वी से धैर्य और परमार्थ का ज्ञान पाया |
२} जल से : पवित्रता का गुण सीखा |
३} वायु से : अनासक्त और मोहरहित  भाव से जगत के लोगों से मिलना |
४} अग्नि से : अपनी प्रतिभा की गरिमा से सदा निर्भीक होकर  दमकना  |
५} आकाश से : सबको अपनी छत्रछाया देना परन्तु उनसे किसी भी कामना पूर्ती की आशा न रखना |
६}चन्द्रमा से : आत्मा सदा  सम्पूर्ण, निर्दोष और अपरिवर्तनशील रहती है केवल हमारे दोषों की परछाईयाँ उसके शुद्ध रूप को प्रकट नही होने देती |
७}सूर्य से : जैसे सूर्य जल के अनेक पात्रों में अनेक होकर प्रतिबिम्बित होता दिखाई देता है वैसे ही ब्रह्म भी विभिन्न बुद्धिवाले मनुष्य रुपी पात्रों में अलग-अलग दिखाई देता है | 
८}शलभ /पतंगा : एकाग्रचित्त होने के लिए अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है वरना बाह्य आकर्षण हमें लक्ष्य से भटका सकते हैं |
९}समुद्र :  कितनी भी नदियाँ ,कैसा भी स्वरूप लेकर समुद्र में मिले ,उसकी गंभीरता बनी रहती है अत: हमें भी क्लेश ,प्रलोभन ,कठिनाइयों में धैर्य बनाए रखना चाहिए |
१०}अजगर : वन-वन भटकने की जगह वह जो मिलता है उसे खाकर संतुष्ट रहता है भोजन के विषय में मैं भी इसी निति का पालन करता हूँ ,जीभ का स्वाद मुझे भटकाता नहीं है |
११}कपोत-युगल : अपने बच्चों के मोह में कबूतर बहेलिए के जल में फंस जाते हैं और ये समझाते हैं कि सभी सांसारिक बन्धनों की जड़ आसक्ति,मोह में लिप्तता ही है |
१२}मधुमक्खी :अनेकों पुष्पों से शहद लाती हैं किसी एक पर बोझ नही डालती ,हमे भी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी पर अनावश्यक बोझ नही डालना चाहिए फिर चाहे वो मानव हो या प्रकृति |
१३}शहद का छत्ते से  : छत्ते का शहद कभी मनुष्य, कभी पशुओं द्वारा लूट लिया जाता है| अत: संग्रह की वृत्ति की व्यर्थता स्वयं सिद्ध हो जाती है |
१४}मकड़ी से  :शिकार के लिए जाला बनाने वाली मकड़ी उसी में फंस कर खुद औरों का शिकार बन जाती है| बुद्धिमान मनुष्य को भी विचारों के ताने-बाने में अपने को बहुत उलझाना नही चाहिए |
१५}शिशु से : प्रफुल्लता ,निश्छलता व् सहज विश्वास के नैतिक गुण शिशु से सीखने चाहिए |

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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

yes learning is a beautiful process . we are able to learn from everyone this is WONDERFUL .thanx swaran for developing this awareness by your blog. keep writing . bhavmangal O/risa

Anil Kumar Dubey ने कहा…

thank you .this is wonderful what SwamiDattatrey tought us .indian heritage is supurb.