प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिती महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रिती महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
नवरात्रों का पहला दिन माँ के शैलपुत्री रूप से जुड़ा है और यही दिन बचपन से मुझे नवरात्रि पर्व के साथ आत्मीयता के अटूट नाते से जोड़ता आया है । हिमाचल की पुत्री होने के कारण " देवी माँ " मेरे मायके की हैं - ये गौरव भाव बिना किसी के समझाये मुझमें उस उम्र में जाग गया था जिस उम्र में मन पर लिखा सच सदा सच ही बना रहता है। घोर - स्वार्थी, अहंकारी ,सत्ता और पाशविक शक्तियों के मद में चूर राक्षसों से टकराने के लिए जिनका व्यक्तित्व कोमल - कठोर सभी स्वरूपों में ढल कर भारतीय समाज को प्रेरणा देता है । नारी की उस महान शक्ति को वर्ष में दो बार अपनी श्रद्धा -भक्ति के पुष्प अर्पित करने वाला हमारा समाज ,- अपने समाज में नारी के प्रति होने वाले अमानवीय व्यवहारों के बीच- -कन्या भ्रूण हत्या ,बलात्कार , बहू -बीबी -बेटी पर अत्याचार के नाम पर फैले भयानक सन्नाटे की ओर से आँखें मूँद कर - - हमारा- देवी पूजा को महत्व देने वाला तथाकथित सभ्य समाज ; नौं दिनों तक माँ के सामने जागरण के ऊँचे -ऊँचे शोर और कंजकों के पाँव धोकर कब तक अपने कर्तव्य की इतिश्री मानता रहेगा ?????????
मेरी और से इस बार - - - -
उन सबके लिए शारदीय नवरात्रि की शुभकामनाएँ ,
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