जाड़ों का मौसम

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मनभावन सुबह

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मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

निर्भया **** एक चीखता सवाल ?,

आज १६ दिसंबर की सुबह ,कोहरे वाला मौसम हमारा मनपसंद मौसम है और इस बार तो ठंड शुरू ही आधा दिसंबर बीतने के बाद आई है पर - - - आज का कोहरा उदासी से भरा लग रहा है । असल में परिवेश से कट कर जीना हमें नहीं आता ।  आज जब निर्भया के साथ हुए जघन्य अपराध को दो वर्ष हो गए हैं हमें समाज में ,लोगों की मानसिक स्थितियों कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई दे रहा । रोज़ नारी अत्याचार की ,उत्पीड़न की शिकार होती है और तथाकथित समाज के ठेकेदार नारी को ही आदर्शों का पाठ पढ़ाते हुए सुनाई और दिखाई देते हैं । हमें यह बड़ी अजीब बात लगती है क्योंकि हमारे भारतीय समाज में बच्चे का पहला गुरू माँ को माना गया है । यह भी सत्य होगा कि नारी को मार्गदर्शन देने वाले पुरूषों को भी माँ की छत्रछाया ने सँवारा होगा - - 
सबसे बड़ा विरोधाभास तो यह है कि ये प्रबुद्ध लोग अत्याचारी को ना कोई उपदेश देते हैं ना ही उचित दण्ड देते हैं । उनके मानवाधिकार की चिन्ता घर से लेकर संस्थाओं तक सब करते हैं, पीड़ित नारी किसी उम्र की हो उसे परिवार और अपने सम्मान के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता है या आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जाता है -----
वाह रे मेरे देवियों की पूजा में रात्रि -जागरण करने वाले समाज !अपने भीतर के अन्धकार को जगाए रखते हो ? 
त्रासदी ये है कि  नीना नायक जैसे महिला वकीलों को भी भयानक दुष्कर्म करने वाले अपराधी के मानव अधिकार की चिन्ता तो है मगर उसकी राक्षसी वृतियों के कारण असमय मौत के मुँह में जाने वाली निर्भया के प्रति न्याय की चिन्ता है ही नहीं । 
निर्भया काण्ड के बाद भी इस तरह की घटनाओं का ना रुकना और नारी संबंधी अपराधों में किशोरों के अनुपात का बढ़ना हमारे समाज और न्याय व्यवस्था की कमज़ोरी के कारण है ।घर ,समाज ,न्यायव्यवस्था --- सभी पीड़ित नारी को और अधिक प्रताड़ित करने में व्यस्त हैं । 
 मेरे दुःख --मेरे आक्रोश का कारण यह है कि निर्भया आज एक ऐसा चीखता सवाल है जिसके उत्तर में यादगार के लिए जलाई गई  मोमबत्तियों की काँपती लौ तो है समस्या को सुलझाता उत्तर नहीं है ।      

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