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रविवार, 11 जनवरी 2015

वीरमाता जीजाबाई

भारतीय परम्परा सदा से इस बात में विश्वास करती आई है कि सन्तान को अच्छे गुण माँ घुट्टी में पिला देती है। बच्चे की पहली गुरू माँ ही होती है वही जाबाल ,सुनीति, मदालसा, सीता और शकुन्तला आदि माताओं नें विषम स्थितियों से जूझते हुए भी इस राष्ट्र को सत्यकाम जैसे सत्यनिष्ठ ऋषि , जैसे दृढ़-प्रतिज्ञ भक्त, अलर्क, लव-कुश, भरत जैसे धर्मात्मा सम्राटों की अतुलनीय धरोहर सौंपी है । 
१२ जनवरी १५९८ में, सामंत लखोजी राव जाधव (आदिलशाही के अंतर्गत) के समृद्ध और प्रभावशाली परिवार में जन्मी "जीजाबाई" नें  भी इस महान परम्परा को आगे बढ़ाया। आदिलशाही की ग़ुलामी झेलती प्रजा की पीड़ा नें जीजाबाई को बचपन से ही स्वतंत्रता का मूल्य समझा दिया था। शाहजी भोंसले के साथ विवाह के पश्चात राजकाज में उनकी कुशलता के सभी कायल हो गए थे। पिता और पति की शत्रुता ,अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना में असफल होने के बाद (निज़ाम और मुग़ल सेनाओं के संयुक्त मुकाबले के कारण)संधि के अनुसार -  शाहजी के कर्नाटक में सूबेदारी संभालने और वहीं रहने को बाध्य होने ,बड़े बेटे संभाजी केअफ़ज़ल खान से युद्ध में शहीद होने के बावजूद जीजाबाई के साहस में कोई कमी नहीं आई । पुणे में रहकर,पति की अनुपस्थिति में, जंगल को कृषि मंदिर, किले और कुशल प्रशासन से व्यवस्थित करने वाली धर्मपरायण राजमाता का दायित्व निभाने के साथ-साथ अपने छोटे बेटे शिवाजी को इस वीरमाता नें रामायण ,महाभारत और भारतीय वीरों की कथायें सुनाकर   बालक शिवा को उनकी भाँति चरित्र निर्माण की प्रेरणा दी । माता की शिक्षा का ही प्रभाव था कि सत्रह वर्ष के किशोर नें "स्वराज्य प्राप्त करने की सौगन्ध " खाई और इसी स्वप्न की पूर्ति के लिए तब तक प्राणपण से तबतक जुटे रहे जबतक इसे सच नहीं कर लिया । 
छलपूर्वक बंदी बनाने वाले बादशाह औरग़ज़ेब की कैद से अपने बुद्धिचातुर्य से छूटे शिवाजीराजे जब सन्यासी के वेश में माँ से भिक्षा लेने गए थे तब राजमाता ने उनको पहचान लिया और कहा , " अब मुझे विश्वास हो गया है कि मेरा पुत्र स्वराज्य की स्थापना अवश्य करेगा । '' 
वीरमाता के आज्ञाकारी वीरपुत्र शिवजी ने बीजापुर और मुग़ल सल्तनत को लोहे के चने चबवाए और रायगढ़ को राजधानी बनाकर लगभग सम्पूर्ण भारत में हिंदवी स्वराज स्थापित करने की नींव रखी । 
मेरे विचार से ; जीजाबाई कार्यक्षेत्र और संतान के व्यक्तित्व निर्माण के दोहरे दायित्वों को जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी कुशलता पूर्वक निभाती रहीं । '' स्वराज्य के लिए संघर्ष " करने की पहली प्रेरणाशक्ति। यह सत्य किसी भी युग में नकारा नही जा सकता कि मातृशक्ति का सम्मान ही किसी समाज और राष्ट्र को यशस्वी बनाता है ।      
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