मेरे देश का वसंत ,पूजा की धूप सा , पावन ऊष्मा से सबको महकाता आता है।
प्रकृति के मखमली धानी लिबास पर टेसू की फूलों भरी चूनर ओढ़ाता आता है,
अँजुरी में कुंकुम भरे शाल्मली,आँखों में सपने सजाए जब हौले से मुस्कराता है,
फागुनी हवाओँ का नटखट झकोरा,चौंकाकर पत्तों को, ज़ोर से खिलखिलाता है,
रति-अनंग का प्रेमोपहार सारी सृष्टि को मदनोत्सव के उल्लास से भर जाता है ,
अबीर-गुलाल का मादक-मदिर मौसम उच्छृंखलता नहीँ,आनंद का संदेसा लाता है,
मेरे देश का वसंत ,पूजा की धूप सा ,पावन ऊष्मा से सबको महकाता आता है !!!!
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