जाड़ों का मौसम

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मनभावन सुबह

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बुधवार, 9 सितंबर 2015

तेरे नाम से सजे इस दिन के मुक़ददस दरवाज़े पर !!

ये साथ बरसों का है या सदियों का ,
मैं बावरी ये क्या जानूँ !
ये रिश्ता साँसों की तरह ज़रूरी है इस सच को ,
हर पल सीने में ज़िंदगी बन धड़कता जानूँ !!
सपनों की तामीर के संदली लम्हों में 
खिली-खिली तेरी हँसी को ,
महकते गुलाब की पंखुड़ियों पर ठहरे हुए
रुपहली चाँदनी में ढले मोती मानूँ  !
पिछली तल्ख़ियों को आँगन से बुहार ,
खुशियों की रंगोली सजाने के लिए ,
सुबह की नई-नवेली धूप सी ,
सिन्दूरी नर्म एहसासों की मिट्टी रांधूँ  !!
मेरे हमसफ़र  ! तेरे नाम से सजे इस दिन के मुक़ददस दरवाज़े पर आज फिर ,
गेरू के अल्पने पर मंगल कलश रख ,आम के पत्तों के शुभेच्छाओं वाले हरे-भरे बंदनवार बांधूँ  !! 

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