जाड़ों का मौसम

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मंगलवार, 18 जुलाई 2017

कौन सी बात ,कौन सी घटना किस सोच को जन्म दे देती है ये समझना बहुत मुश्किल है- - - -  पर क्या कीजिए मानव का मन है ही ऐसा ! कब कौन सी यात्रा पर निकल पड़े इसका कोई भरोसा नहीं ! हम कल औरोरा बोरियालिस के रंग में ऐसे रंगे कि सोच के कितने बंद कपाट खुले, ये तो याद नहीं पर हमेशा की तरह हमनें अपने को प्राचीन संस्कृतियों की उस दहलीज़ पर खड़े पाया जहाँ सभी मानव सभ्यताएँ  प्रकृति-पूजक थी । समस्त विश्व की प्राचीनत्तम सभ्यताओं में मनुष्य को  दिव्य प्रकाश की ओर ले जाने वाली देवियों का वर्णन मिलता है। वैदिक सभ्यता की देवी उषस या ऊषा, यूनानी सभ्यता की देवी ईओष (Eos ) और रोमन सभ्यता  की देवी औरोरा ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं।इन तीनों में एक बड़ी समानता यह है कि इन तीनों के परिधान केसरिया रंग के हैं । 
ऋग्वेद के २० सूक्तों में ऊषा देवी की स्तुति की गई है। ७५ वें सूक्त में कहा गया है ," द्यौ: (आकाश )की पुत्री ऊषा नें अपना प्रकाश फैलाया। उसने सबसे अप्रिय शत्रु रूपी अन्धकार को दूर भगाया और प्राणियों के व्यवहार के लिए उनके गंतव्य मार्गों को दिखाया। " ऋग्वेद की देवी उषा /ऊषा, कमनीय सर्वाधिक सुंदर है। वो तमोमयी रजनी की बहन है। चिर-प्रौढ़ा होने पर भी चिर-युवा हैं। ऊषा सुभगा (सौभाग्यवती ),रेवती (वैभव संपन्न ), प्रचेता: (बुद्धिमती ),मघोनी (दानशीला ) और  
अमृतस्य केतु: (अमरत्व का चिन्ह) है। ऊषा सूक्त में उनको गायों की माता कहा गया है।इनका रथ घोड़े या लाल गायों द्वारा खींचे जाने का वर्णन मिलता है।  
यूनानी भोर की देवी ईओष , टाइटन ह्यपेरिओन  (hyperion ) की पुत्री है, जो अद्वितीय सुंदरी और दैवीय ज्योति से संबद्ध हैं। उनको पँखों वाली देवी के रूप में वर्णित किया गया है जो घोड़ों वाले रथ पर आती हैं। वो अपनी कोमल गुलाबी उंगलियों से स्वर्ग के द्वार खोलकर मार्ग प्रकाशित करती हैं ताकि उनका भाई हेलिओस (सूर्य देव ) अपने रथ पर आकाश मार्ग की परिक्रमा कर सके। सेलेने (चाँद ) उसकी बहन है।' केसर ' उनका प्रतीक है। वे आशा ,ऊर्जा ,सौभाग्य व सौंदर्य प्रदायिनी देवी हैं। 
  रोमन औरोरा देवी के भी एक भाई सॉल (सूर्य ) और बहन लूना (चाँद ) है।औरोरा वास्तव में यूनानी भोर की देवी का ही प्रत्यवर्तन है। 
विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में भोर की वेला में सुख,सौभाग्य,वैभव ,आशावादिता ,ऊर्जा व नवजीवन का संचार करने वाली शक्ति देवियों या मातृशक्ति को ही माना  गया है। सुमेरियन - अया या अजा , फिनीशियन  - अस्तारते , अरब की हेक़ेत , जर्मेनिक - ऑस्टरा (ईस्टर इनको ही समर्पित प्राचीन पर्व माना जाता है )  आदि सभी मातृदेवियाँ ही हैं।
  - - - - और औरोरा बोरियालिस की रंगबिरंगी चुनरी का प्रकाश अपनी अद्वितीय आभा में हमें ना जाने कितने हीअनगिनत संदेश सुना रहा है।शायद " हरियाली-तीज "और "सुमेरु-ज्योति" के बीच के एक सुदृढ़ संबंध को हम इस हरे रंग के विस्तार में महसूस कर रहे हैं। हरियाली तीज की धानी चूनर, धानी चूड़ियाँ  और सुमेरु ज्योति का हरा रंग , धरती की हरी चूनर को ओढ़कर, लहरा कर मुस्कराता आकाश  - - - - दोनों ही प्रकृति की उर्वरता ,उसकी सृजनशीलता को सम्मान देते प्रतीत हो रहे हैं । भारतीय संस्कृति में शिव - पार्वती  को समर्पित यह सावन हमें धरती के इस छोर पर उत्तर ध्रुवीय प्रकाश की किरणों का नर्तन, अर्द्धनारीश्वर के साक्षात दर्शन का अपरिमित आनंद दे रहा है !! अदभुत दृश्य !!!!        
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