तीन दशक पहले जब एक मनचाहे सफ़र पर हम दोनों
एकाकी हौसलों के साथ चल पड़े थे ,
प्यार की मुरलिया की तान में खोए हुए , बिन पतवार ही
गहरी नदी पार करने की ज़िद पर अड़े थे।
ना सोना-चाँदी ना ईंट-पत्थर से बस रूमानी से ख़्वाबों से
अपने घर के दीवारो-दर मढ़े थे ,
दुनियादारी की सारी औपचारिकताओं के बंधन तब
तिलमिलाए से हाथ बांधे खड़े थे ।
एक ऐसा सफ़र जिसका रास्ता अतीत के फासलों को लाँघ
वर्तमान की दहलीज़ पर ले आया ,
एक ऐसा सफ़र जिसकी राह के काँटों की चुभन को
तेरे सहारे की मरहम नें हौले से सहलाया ।
अँधेरों ने जब-जब उलझाने के लिए अपनी साजिशो का मजबूत जाल
हम पर बेवजह ही फैलाया है कभी ,
मेरे माथे की परेशान सलवटों को मिटा अपनी ऊँगलियों से
सिन्दूरी सूरज को सजाया है तभी ।
आ मेरे मीत ! आज ज़िन्दगी की किताब के पन्नों को पलटें
फिर से एक बार खुशियों भरे माज़ी से जुड़ें ,
मयूरपंखी एहसासों की पालकी में बैठ कर
बादलों के पँखों से हल्के -हल्के आसमानों मे उड़ें ।
यूँ ही बस आवारा कदमों से घूम आएँ हम दोनों
यादों की उन घुमावदार गलियों में ,
सारे आलम की खुशियाँ बसती थी जहाँ
मोगरे की उजली -उजली सुगन्धित कलियों में ।
ओ मेरे मनमीत ! फिर से बरसती चाँदनी के तले
मेरी माँग में भर जा भोर की लाली ,
यकीन कर शिखर दोपहरी में भी जीवन की
बिखरा दूँगी मैं चांदनी बन शीतल उजियाली । ।
1 टिप्पणी:
Beautiful poem
Tai
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