आज के समाचारपत्र में ख़बर है --गांधीजी के उस चश्में की बिक्री न्युयोर्क में, जिसके विषय में बापू ने कहा था --"इन्होने मुझे स्वतंत्र भारत का दृष्टिकोण प्रदान किया " समाचार की प्रतिक्रिया कहूँ या सामयिक स्थितियों का खुलासा - ; बस कलम चल पड़ी भावों की पैरवी करने |
* * * * * * *
ठंडी शूल सी बेंधती हवाओं में , सबको न्याय दिलाने की आस में ,
'सच्चाई ' सत्याग्रही खादी की चादर लपेटे बैठी है |
आने-जाने वाले संवेदना के दो-चार वाक्य उछाल कर फेंकते हैं ;
उस का सत्याग्रह जनता को न्याय दिलाने के लिए है
जनता में से - पर - कोई भी उसके साथ नही है ,
जनता - - - - व्यस्त - - है - -
ख़ुद को बचाने के तथाकथित संघर्ष में ,
और नेता कुर्सी बचाओ के अभियान में |
फिर 'वो ' जाति,धर्म और वर्ग के किसी भी -
ऐसे खांचे में भी तो नही आती - - -
जिसके समर्थन से अधिक वोट मिलने की सम्भावना हो ,
फिर ये ग़ुलाम भारत भी तो नही - जहाँ सत्याग्रह की एक आवाज़ -
सबको एक कर देती थी ; ये स्वतंत्र भारत है '
नई सदी का इंडिया है - - यहाँ तक आते -आते
' नेता ' , ' आज़ादी ' और ' सत्याग्रह ' शब्दों के अर्थ नए हो गये हैं !
आज - - - -जब - - -उदासीन - - तटस्थ - ठंडी हवा
सच्चाई के दुबले - पतले जिस्म को अकडाने लगेगी
तब वे आयेंगे जो समाज के रक्षक हैं - - -
और क़ानून की किसी धारा के अंतर्गत ! (पहले से ना होगी तो बनाकर )
उसे गिरफ्तार कर अस्पताल भेज देंगें |
सत्याग्रह कामयाब हुआ ये मत सोचना !
ये तो राजनीति की वो गहरी चाल है
जो सच्चाई के अकेलेपन का फ़ायदा उठा
अपने चमचों से / आधुनिक चारणों से प्रचार करवाएंगे -
-कि - ये न्याय के लिए संघर्ष नहीं - ,
ये तो विपक्ष की शासन को बदनाम करने की साज़िश थी |
भेड़ों सा हमारा विशाल जनसमुदाय ! !
इस नये सत्य के उदघाटन पर -कुछ देर हैरान होगा !
जायेगा सिर झुका कर , तटस्थ भाव से अपने रोजमर्रा के काम में जुट जायेगा ! ! ! !
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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