देशहित में दी शहादतों को निजी स्वार्थों से जोड़ती भीड़ को लाँघ ,
निरुत्तरित सवालोँ की बाड़ के उस पार पहुँची हूँ मैं – - उस गाँव ,
जिस गाँव में , घर के आँगन में जतन से लगाया गुलमोहर का पेड़,
अपनापे से भर, सबको देता है केसरिया फूलों भरी हरी छतनार छाँव ।
इस घर के इकलौते बेटे नें , उस युवा सैनिक नें , सीमा से भेजी थी पाती ,
* * * * * * * * * * * बीत गए - - ग्यारह बरस आज !!
पाती में लिखा था - - जल्दी लौटूँगा , मत घबराना मेरी माँ ,
गोद में सिर रखकर मेरे बालों में अपनी जादूभरी ऊँगलियाँ फिराना माँ ,
सपनों वाली दुनिया में खो जाऊँ तो बेशक - - चुपचाप उठ जाना माँ ,
उस दिन से – तेल-कटोरी हाथ में लिए, बार-बार उँगलियाँ भिगोती है माँ ,
’झूठ कहते हो तुम सब कि सो गया है मेरा लाल, सबको कहती है माँ,
पथराई आँखों से पंथ निहारती - अपने से बतियाती है छोड़ कर सारे काज
आया नहीं अब तक क्यों *********** ग्यारह बरस बीते आज !!
पाती में लिखा था - - जल्दी लौटूँगा , तैयार रहना मेरे बाबा,
अपने पक्के घर का सपना –अब ये बहादुर बेटा सच करेगा बाबा ,
हाँ शतरंज की बाज़ी में अब आपसे ‘कोई’ नहीं डरेगा बाबा ,
उस दिन से – कच्चे घर के आँगन में, बान की चारपाई बिछाते हैं बाबा ,
शतरंज की गोटों को सजाते हुए अकसर बुढ़ापे की लाठी भूल जाते हैँ बाबा ,
काली-सफ़ेद मोहरों को सीने से लगा –घबराते, सोचते है छोड़ कर सारे काज ,
आया नहीं अब तक क्यों ***********ग्यारह बरस बीते आज !!
पाती में लिखा था - - जल्दी लौटूँगा जीवन साथी – मेरी संगिनी ,
मेंहदी, बिंदिया, चूड़ियाँ ,पायल और लहरिया ओढ़नी पहन मेरी संगिनी,
भूला नहीं - पहली तीज है अपनी , सज-धज कर रहना तैयार मेरी संगिनी ,
झूला झुलाऊँगा - जब सावनी शाम मधुर मदिर रस बरसाता आएगी मेरी संगिनी ,
उस दिन से –बेमौसम भी बरसे मेघा तो – पीपल पर झूला डालती है शाम को- संगिनी ,
लाख समझाओ – दुल्हन बन बैठी वो बिरहन, पूछे यही सवाल छोड़ कर सारे काज,
आया नहीं अब तक क्यों ***********ग्यारह बरस बीते आज !!
जादूभरी माँ की उँगलियाँ ,बाबा की शतरंज की बिसात ,बिरही दुल्हन की बरसती शाम,
–*********** ग्यारह बरस से बाट जोह रहे हैं जिस ठाँव- - छोड़ के सारे काम,
देश का आज सुरक्षित रखने को अपना कल लिख दिया इन्होंने हम सबके नाम,
इन कच्चे घरों के मज़बूत हौसलों ने कब माँगे अपनी कुरबानी का दाम ??
शीश झुका नमन कर, अमर शहीदों का करें सम्मान; हम छोड़ के सारे काज ,
रौशनी उन तक भी पहुँचाएँ जिन घरों के मंगल दीप हैं बुझे आज
* * * * * * * * * * * ग्यारह बरस बीते आज !!
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