गुवाहाटी में २९ से ३१ दिसम्बर से चलने वाले बाल-कला -संगम के कार्यक्रम को देखकर लौटते समय मेरे ज़हन में बार- बार आज के दौर के प्रसिद्ध शायर निदा फ़ाज़ली जी की नज़्म के ये शब्द गूँजते हुए सुनाई दे रहे हैं ;
"घास पर खेलता है इक बच्चा ,पास बैठी माँ मुस्कुराती है !
मुझको हैरत है कि क्यों दुनिया काबा ओ ' सोमनाथ जाती है !!"
भारत के पूर्वोत्तर में बसने वाले सीधे -सरल-सहज विश्वासी और निश्छल मुस्कान से सजे चेहरों का एक मेला लगा था | अरुणाचल ,आसाम ,नागालैंड ,मणिपुर,मिज़ोरम,मेघालय ,त्रिपुरा और सिक्किम के सुदूर अंचलों से आए आठ से पन्द्रह वर्ष के बच्चों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने का लक्ष्य सामने रख कर आयोजित किए गये इस कार्यक्रम में , अपने -अपने प्रांतीय और जातीय परिधानों में सजे -सँवरे बच्चों नें जब अपनी लोक-कलाओं का प्रदर्शन करने के लिए , सरुसजई स्टेडियम ,गुवाहाटी के फ़र्श पर अपने कदम रखे तो लगभग २५०० लोगों की क्षमता वाला भवन , ब्रह्मपुत्र की लहरों पर डूबते -उतरते सैंकड़ों इंद्रधनुषों सा दिखाई देने लगा | गायन , बायन(वादन ),नृत्य , भाषण ,अभिनय और चित्रकला का प्रदर्शन करते आठ राज्यों के छियासी (८६ ) ज़िलों के बच्चों के कला-कौशल ने हमें इतना मंत्रमुग्ध किया कि दिल्ली के बड़े स्तरीय प्रदर्शनों से हम उनकी तुलना कर सकते हैं |
२९ दिसम्बर अर्थात कार्यक्रम का पहला दिन ; " देश का भविष्य :बच्चों के हाथ -बच्चों के साथ " के लक्ष्य को अपना साध्य बना चलने वाले बाल कला संगम के प्रतिनिधियों और कार्यकर्ताओं नें बच्चों के बहुमुखी विकास के सभी साधनों पर दृष्टि रखी | सुबह ६.३०से ८.३० का समय बच्चों ने , व्यायाम, योगाभ्यास ,प्राणायाम और खेलकूद आदि में बिता कर अपनी दिनचर्या प्रारंभ की | गायन -बायन , ध्वजारोहण तथा सरस्वती वन्दना के बाद - स्टेडियम के बाहर, गुवाहाटी के नीले आकाश के नीचे हरियाली भरे मैदान में , अद्वितीय प्रतिभा के धनी ,सर्वकला सम्पूर्ण डॉ भूपेन हज़ारिका जी की प्रतिमा के सम्मुख नतमस्तक होकर हर छोटे -बड़े नें उनकी पावन स्मृतियों को भावभीनी श्रद्धांजली समर्पित की |अप्रतिम कलाकार , भारतमाता के अमर सपूत भूपेनदा को नमन कर आठों राज्यों के नन्हे चित्रकारों नें अपनी तूलिका संभाल ली | इस छोर से उस तक फैली , ११०० बच्चों द्वारा बनाई गई ११०० मीटर की लम्बाई वाली चित्रों की श्रृंखला ने , पूर्वोत्तर के पहाड़ों के घुमावदार रास्तों की यादें ताज़ा कर दी | इस प्रदेश के विविध रंगों वाले सुंदर फूलों के रंग बच्चों ने कागज़ों पर उड़ेल कर रख दिए थे | दोपहर के भोजन के बाद मंच का कार्यक्रम, जनप्रिय अभिनेता श्री प्रांजल सैकिया जी द्वारा डॉ भूपेन हज़ारिका जी और डॉ मामोनी रायिसोम गोस्वामी जी की पावन स्मृतियों को भावभीनी श्रद्धांजली समर्पित करने से प्रारंभ किया गया | प्रांजलदा की दिल की गहराइयों में उतर जाने वाली प्रभावपूर्ण आवाज़ के जादू नें स्टेडियम के भीतर के सारे वातावरण को माधुर्यपूर्ण करुणा से सराबोर कर दिया | तत्पश्चात सभी राज्यों के बच्चों ने भूपेनदा -संगीत का ऐसा समा बांधा कि सारा स्टेडियम भूपेनदामय हो गया | आसाम ,मेघालय के बच्चों ने अपने काव्यपाठ ,अरुणाचल ,मणिपुर ,नागालैंड और सिक्किम के जनजातीय-नृत्य ,आसाम का नाटक और शास्त्रीय नृत्य -संगीत के कार्यक्रमों का आनन्द लेते दर्शकों की करतल -ध्वनि पर दमकते चेहरों को देखकर ही निदा फ़ाज़ली जी की ऊपर लिखी पंक्तियाँ कई दिनों बाद फिर याद आ रही थी |
३० दिसम्बर ;कार्यक्रम का दूसरा दिन --| दैनिक कार्यक्रमों में 'खोल' का बायन ,मेघालय व् सिक्किम के बच्चों की अपनी भाषा में नाट्य-प्रस्तुती तथा सभी राज्यों के लोक -नृत्य ,संगीत ,शास्त्रीय -नृत्य,संगीत के प्रदर्शन का आनन्द कलाकारों और दर्शकों दोनों ने उठाया | आज के दिन का विशेष आकर्षण यह था कि दूरवर्ती क्षेत्रों से आए बच्चों को मेघालय के गवर्नर महामहिम श्री रंजित शेखर मूशहरी जी के सानिध्य में बिताने का सुखद संयोग मिला | महामहिम के साथ मिले 'परस्पर -सम्वाद' के सुअवसर को बच्चों के मासूम सवालों ने कितना मनभावन बनाया इसकी एक बानगी मैं सब तक पहुँचाना चाहती हूँ |
बच्चा : क्या आप चॉकलेट खाते हैं ? मेरे माता -पिताजी मुझे चॉकलेट नहीं खाने देते |
महामहिम जी : क्या इस बच्चे के माताजी-पिताजी यहाँ उपस्थित हैं ?
पिता : जी ,महामहिम जी मैं इसका पिता हूँ |
महामहिमजी : (हँसते हुए ) आप इसे कभी -कभी चॉकलेट खाने की आज्ञा दे दिया कीजिए |
बच्चा : आपने बताया नहीं आप चॉकलेट खाते हैं या नही ?
महामहिम : (ठहाका लगाते हुए ) हाँ , मैं भी चॉकलेट खाता हूँ
इस संवाद के बाद पूरा सभा-भवन हँसी की फुहारों में ऐसा भीगा कि शायद - - २५०० लोगों में शामिल हर दर्शक अपने बचपन को फिर से जीने के लिए बाध्य हो गया था | सभी ने अपने आज कि चिंताओं को भुला कर बचपन कि बेफ़िक्री को जी लिया था | बच्चों के साथ ,उनकी निकटता में गुज़रा हर पल हमें परम आनन्द की आलौकिक अनुभूतियों में कुछ इस तरह भिगोता रहा है कि हमने एक बार नहीं अनेक बार दोहराया है - - -
मुझको हैरत है कि क्यों दुनिया काबा ओ ' सोमनाथ जाती है !!"
2 टिप्पणियां:
Swaran, It's BEAUTIFUL and INSPIRING
Prabhat tandon] BETIA.
BRILLIANT CONCEPT.keep it up.
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