आज का दिन जब शुरू हुआ तो बसंत की गुनगुनाती हवा और गुनगुनी धूप से भरा-भरा उजला सा दिन था |मेरी छत को छूनेवाले आम, जामुन के पेड़ .उनकी बौराई डालियों पर बैठे पंछियों और आकाश के नीले रंग -सब ओर एक असीम आनंद छलकता दिखाई दे रहा था |इस सुंदर दृश्य के लिए प्रकृतिऔर उस परमसत्ता का धन्यवाद कर हम छत्त से नीचे उतरे तो दूरदर्शन पर आ रही खबर ने एक ही पल में ऐसी ज़मीन पर लाकर पटक दिया जहाँ प्रकृति की प्रेममयी छाया में पलने वाले , "वासुधैव कुटुम्बकम " को अपने जीवन का मूलमंत्र मानने वाले आज के बहुसंख्यक मानवों को - मुट्ठीभर लोगों के आतंक के भयावह दृश्य देखने को बाध्य होना पड़ता है | आज श्रीलंका के क्रिकेट -खिलाड़ियों पर हमला किया गया ! खिलाड़ी जो सारे संसार को एक ऐसी डोर से बांधते हैं जिसके प्रभाव से देशों की सीमायें समाप्त हो जाती हैं | - - - - घायल खिलाड़ियों को समर्पित है नीचे लिखी मेरी कविता - - - ---
* * * * * * * *
आज सूरज नें भरपूर कोशिश की
बसंत को जबरन गुदगुदा कर हँसाने की
वो जानता है बसंत के हँसने से - - - -,
धरती ; अपने ठिठुरते बदन और भीगे चेहरे की
उदासी को पोंछ कर - - - - खिलखिलाकर हँस पड़ेगी |
सूरज और धरती का लाडला बेटा है - - - - बसंत |
उसकी मुस्कुराहट से " उनकी " पूरी दुनिया हँसेगी |
पर - - आज बसंत मुस्कुराता नही
उसके मासूम चेहरे पर दहशत की स्याही पुती है ,
उसकी जीवन के उल्लास से भरी - भरी आँखों में ,
पिछली गली में बिखरा लहू तैर रहा है - - -
और - - - - बसंत गूँगा हो गया है ,
खुशियों की आवाजों से गूंजने वाला मौसम गूँगा हो गया ,
गूंगी बेआवाज़ हंसी की कल्पना से वो भयभीत है ,
- - - - इसलिए आज बसंत हँसता नही |
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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