
आम के पेड़ सा
- - - - ' वो ' ;
फल लिए खड़ा रहा चुपचाप !
घनी उसकी छाँह का आसरा पाते
लोगों नें,
जब उस पर की, पत्थरों की बेपनाह बरसात !!!!
* * * *
फूल हूँ , डाल से छूटी तो भी
ख़ुशबू बन सब ओर बिखर जाऊँगी मैं |
नाज़ुक से रिश्तों के एहसास को
अपने वजूद से महसूस करवाऊँगी मैं ||
* * * *
मंजिल की धुन में, लहूलुहान हुए पाँव कितने,
इसकी परवाह किसे है अब |
गीतों में ढल के, साँसों को बहका गया,
काँटों की तीखी चुभन का सुरूर जब ||
* * * *
यकीं है आज , इस दौर में ,
मेरे होने की वजह कुछ तो ख़ास है |
कोई चाहे माने ना माने
आनेवाले वक्त से मुझको बड़ी आस है ||
* * * *
*********************
*********************
1 टिप्पणी:
BEAUTIFUL DEPICTION OF LIFE .
Montek /Victoria
एक टिप्पणी भेजें