मिलने की ऊष्मा भरी पावन घड़ी ,
अपनत्व भरी खुशियों को सब में बाँट,
मिटा रही है धरती के संकटों की हर झड़ी |
शहर की मेरी काली दाल की खिचड़ी में ,
गाँव की सौंधी महक भरा घी गया है मिल ,
मीठी -मीठी गुनगुनी धुप सी गुड़ में,
खिलखिलाहट भरी हँसी बिखरा रहे हैं ढेर सारे तिल ||
उड़ती रंग भरी आकाश का संदेशा
लाती पतंगों ने हर दिशा में बिखरा दी सुख और शांति ,
सब के जीवन के हर अंधकार को,
समृद्धि के स्वर्णिम प्रकाश से भर जाए मकर संक्रान्ति !!
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