बैसाख की बौराई अमराइयों की गर्म होती छाहों में ,
आज कोयल की कूक बन कर जिसे पुकारा है ...,
तपते दिनों की ठँडी सी पुरवाई --- तुम ही तो हो |
उलझनों ,उदासी के उमस भरे दिनों में ,
जब मन अनबूझे डर से दहल जाए तब ..
जो प्राणों को बेला सा महकाए वो-तुम ही तो हो ।
हादसों के समंदरों नें पाँव तले की ज़मीन छीनी ,
तब उफनती लहरों में पैर जमा , हाथ थाम
मेरे गुमशुदा हौसलों को मुझे लौटाया वो-- तुम ही तो हो ।
सिर्फ़ तुम ---सिर्फ़ तुम ही हो ।
करिश्मा ये कैसा हुआ अभी -अभी देखो ;
जेठ की ओर क़दम बढ़ाते मौसम की सरगम
रिमझिम के मधुर सुरों में खोने लगी है ।
हवाओं के झकोरों से बादलों तक पहुँचीआज के "ख़ास दिन" की ख़बर शायद ---
हमारे साथ -साथ सबको होने लगी है। 9 मई --एक-- ख़ास दिन की ख़बर ॥
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