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शुक्रवार, 1 जनवरी 2016


नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ  



        २२ जनवरी २०१५ को भारत के प्रधानमंत्री नें पानीपत ,हरियाणा में एक प्रतीक्षित सपने की पूर्ति की ओर क़दम बढ़ाते हुए आह्वान किया था   '' बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ  '' तथा ....अपने गोद लिए गाँव जयपुरा में बेटियों के जन्म के उत्सव पर वहाँ के नागरिकों से पाँच पेड़ लगाने का अनुरोध किया |   विदेशी व तथाकथित बुद्धिजीवियों के भारत के विषय में अनर्गल दुष्प्रचार को मैं सिरे से नकारती हूँ क्योंकि मैनें भारतीय सभ्यता के प्रारंभिक युग से अर्थात वैदिक युग से वैदिक ऋचाओं की रचयिता ऋषिकाओं की परम्परा देखी | बेटियों को पढ़ाने की आवश्यकता भारतीय संस्कृति में प्रारंभ से ही स्वीकार की गई थी | इसी परंपरा के परिणामस्वरूप हमें ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में ;  घोषा ,इन्द्राणी ,लोपामुद्रा,अपाला सूर्यासावित्री ,वागाम्भृणी ,सार्पराज्ञी ,अरुंधती , जूहू ब्रह्मजाया ,कामायनी ,गार्गी ,मैत्रेयी - - - - आदि उन ब्रह्मवादिनी ऋषिकाओं की लंबी सूची मिलती  है जिनकी ऋचाओं में उनके सृष्टि के हर तत्व के प्रति वैज्ञानिक विवेचन के दर्शन होते हैं |  ऋग्वेद के प्रथम मंडल के  प्रथम सूक्त में हमारे आदि ऋषियों नें स्पष्ट शब्दों में कहा है    :------
"या: कन्या यावच्चतुर्विंशतिवर्षमायूसतावद  ब्रह्मचर्येण जितेंद्रिया:
   तथा सांगोपांगवेदविद्या अधियते ता: मनुष्यजाति भवन्ति |   " 
अर्थात जो कन्याएँ २४ वर्ष तक ब्रह्मचर्य पूर्वक सांगोपांग वेद-विद्याओं को पढ़ती हैं वे मनुष्य -जाति को सुशोभित करती हैं | 
"नारी और प्रकृति " ;----दोनों के मध्य का अन्योन्याश्रित संबंध मुझे भारतीय संस्कृति के उसी स्वर्णिम  कालखंड में लाकर छोड़ जाती है जहाँ के लोग उषा / संध्या की उपासना करते थे | प्रकृति के हर सुंदर   प्राणदायी अंश को माँ के उच्चत्तम पद पर आसीन कर देते थे | ये संस्कार हम भरतवासियों को विरासत में मिला है - - - -कोई इसे स्वीकारे या अनदेखा करने की कोशिश करे ! !
 हम तो अपने प्रिय मूर्धन्य कवि "श्री जयशंकर प्रसाद जी " की कालजयी  कृति " कामायनी" के "इड़ा सर्ग " के इस ' समरसता ' के संदेश के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ सबको देना चाहते  हैं  :-----
"  तुम भूल गए पुरुषत्व मोह में कुछ सत्ता है नारी की। 
समरसता है संबंध बनी अधिकार और अधिकारी की | "

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