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सोमवार, 7 अगस्त 2017

कला मर्मज्ञ रवींद्रनाथ ठाकुरजी की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन !!

रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गुरुदेव की मेरी मनपसंद कविताओं " जोदि तोर डाक शुने कोउ ना आशे तोबे ऐकला चोलो/ मन हो निर्भय जहां ज्ञान मुक्त हो जहां /आदि में से एक है ****
" जन्मकथा " भारतीय संस्कृति में महाप्रयाण का समय
नवीन सृष्टि का उद्घोष है इसलिए
जन्मकथा.... इस अवसर पर संगत है।
       
 *" जन्मकथा  "( रवीन्द्रनाथ ठाकुर)
” बच्चे ने पूछा माँ से ," मैं कहाँ से आया माँ ? “
माँ ने कहा,”तुम मेरे जीवन के हरपल के संगी- साथी हो !”
जब मैं स्वयं शिशु थी,खेलती थी गुड़ियाके संग,तब भी,
और जब शिवजी की पूजा किया करती थी तब भी।
आंसू और मुस्कान के बीच बालक को ,कसकर,
छाती से लिपटाए हुए, माँ ने कहा  
,” जब मैंने देवता पूजे, उस वेदिका पर तुम ही आसीन थे ,
मेरे प्रेम , इच्छा और आशाओं में भी तुम्ही तो थे !
और नानीमाँ औरअम्मा की भावनाओं में भी,तुम्ही थे !
ना जाने कितने समय से तुम छिपे रहे !
हमारी कुलदेवी की पवित्र मूर्ति में ,
हमारे पुरखो की पुरानी हवेली में तुम छिपे रहे !
जब मेरा यौवन पूर्ण पुष्प सा खिल उठा था,
तुम उसकी मदहोश करनेवाली मधु गँध थे !
मेरे हर अंग प्रत्यंग में तुम बसे हुए थे
तुम्ही में हरेक देवता विराजमान थे
तुम, सर्वथा नवीन व प्राचीन हो !
उगते रवि की उम्र है तुम्हारी भी,
आनंद के महासिंधु की लहर पे सवार,
ब्रह्माण्ड के चिरंतन स्वप्न से ,
तुम अवतरित होकर आए थे।
अनिमेष दृष्टि से देखकर भी एक अद्भुत रहस्य रहे तुम!
जो मेरे होकर भी समस्त के हो,एक आलिंगन में बद्ध  सम्बन्ध ,
मेरे अपने शिशु ,आए इस जग में,
इसी कारण मैं , व्यग्र हो, रो पड़ती हूँ,
जब, तुम मुझ से दूर हो जाते हो…कि कहीं,
जो समष्टि का है उसे खो ना दूँ कहीं !
कैसे सहेज बाँध रखूँ उसे ?किस तिलिस्मी धागे से ? "
{७ अगस्त} कला मर्मज्ञ रवींद्रनाथ ठाकुरजी की पुण्यतिथि पर कोटि-कोटि नमन व श्रद्धासुमन समर्पित हैं |
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