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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

तीर्थराज नैमिषारण्य

 हम में से अधिकांश सनातन धर्मी परिवारों में वर्ष में एक-दो बार पूर्णिमा या घर में होने वाले मांगलिक समारोहों में भगवान सत्यनारायण जी की कथा का आयोजन अवश्य किया जाता है। श्री सत्यनारायण भगवान की प्राचीन काल से वर्तमान काल तक अबाध रूप से भारत के घर-घर में प्रचलित इस कथा का प्रवर्तन नैमिषारण्य की पावन धरती से ही हुआ है। हमनें भी अनेकानेक बार सत्यनारायण की कथा का प्रारम्भ में नैमिषारण्य के उल्लेख को पढ़ा है-
एकदा नैमिषारण्ये ऋषय: शौनकादय: ।
प्रपच्छुर्मुनय: सर्वे सूतं पौराणिकं खलु ।।
एक बार भगवान विष्णु एवं देवताओं के परम पुण्यमय क्षेत्र नैमिषारण्य में शौनक आदि ऋषियों ने भगवत्-प्राप्ति की इच्छा से सहस्र वर्षो में पूरे होने वाले एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया।
----पढ़ने के बाद नैमिषारण्य को, उसके महत्व को जाना नहीं था क्योंकि एक कथा में से निकलती दूसरी कथा----और कथाओं में से उभरती नई कथाओं के आनंद के भँवर में डूबते-उतरते हुए हमारी दृष्टि कभी *पुण्यमय क्षेत्र नैमिषारण्य* पर ठहरी ही नहीं। - - - - परंतु - - - - 
६ दिसंबर २०१७ को जब हमनें इस पुण्यमयी धरती को पहली बार नमन किया वो क्षण, वहां बिताए तीन दिनों की स्मृतियां हमें आज भी रोमांचित कर देती हैं। उन तीन दिनों में हम तीन युगों ; सत-युग, त्रेता-युग और द्वापर-युग के पावन अनुभवों से सराबोर होकर लौटे हैं। 
मनु-शतरूपा तपस्थली :
भारतीय सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि ब्रह्माजी नें धरती पर मानव जीवन की सृष्टि का उत्तरदायित्व इस धरती की प्रथम युगल जोड़ी-मनु व शतरूपा को दिया। तदनंतर मनु व सतरूपा ने नैमिषारण्य में ही २३००० वर्षों तक साधना की। प्रारंभ से ही हमारी भारतीय अस्मिता नें मनु-शतरूपा को अपने आदि-माता-पिता स्वीकर किया है इसलिए नैमिषारण्य में मनु-शतरूपा मंदिर में उनके सानिध्य को अनुभव कर हम जितने भावविह्वल हुए उतने ही गदगद इस सत्य को जानकर हुए कि महर्षि वेदव्यास और उनके शिष्यों नें इसी पावन धरा पर चारोंं वेदों; ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद की, १८ पुराणों  स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, ब्रम्हाण्ड पुराण, लिंग पुराण, नारद पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रम्ह पुराण, पद्म पुराण, कुर्म पुराण, भागवत पुराण, अग्नि पुराण, मार्कण्डेय पुराण, ब्रह्मांड पुराण, वैवर्तक पुराण, वराह पुराण, भविष्य पुराण, वामन पुराण, मत्स्य पुराण एवं वायु पुराण की रचना भी यहीं हुई है। नैमिषारण्य छः शास्त्रों ; सांख्य, योग, वेदान्त, न्याय, मीमांसा एवं वैशेषिक और सत्यनारायण कथा की रचनास्थली भी है। 
ललिता देवी शक्ति पीठ:
इस चमत्कारी धरा नें हमें अपनी ससुराल के सबसे आदरणीय और अपरिमित स्नेह देने वाले फूफा ससुर जी की भावभीनी यादों के सम्मुख ला कर खड़ा कर दिया जिनको, हम पिताजी कहते थे और वे हमें जीवनपर्यंत बेटा कहते रहे थे। हमें यहां आने से पहले यह मालूम नहीं था कि यहां हमें उन ललिता देवी के साक्षात दर्शन मिलेंगे ! 
जिनके स्वरूप का वर्णन, पिताजी हमसे अपनी पुस्तक "ललितासहस्रनाम " की टीका लिखते समय संशोधन व लेखन करवाते समय करते थे ! यह पिताजी का आशीर्वाद और देवी माँ की कृपा थी कि ब्रह्म मुुहूर्त में होने वाले यज्ञ में अनिल जी और हम अनायास ही सम्मिलित हो गए। ललिता देवी शक्ति पीठ में एक ही परिसर के भीतर श्री ललिता को समर्पित दो मंदिर हैं। एक नवीन मंदिर है जिसके भीतर ऊंची पीठिका पर एक प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर के दर्शन के बाद यहाँ से बाहर आकर प्रदक्षिणा करते एक त्रिकोणीय यज्ञकुंड एवं उसके पश्चात एक छोटा मंदिर है। इस पुराने मंदिर में श्रीललिता जी की पुरानी मूर्ति है। मान्यता है कि नैमिषारण्य में यहीं देवी सती के पार्थिव शरीर का हृदय गिरा था। यहाँ देवी ललिता को लिंग-धारिणी शक्ति भी कहा जाता है। श्री ललिता देवी नैमिषारण्य की पीठासीन देवी है। अतः इनके दर्शन के बिना आपकी नैमिषारण्य की यात्रा अधूरी है।इस शक्तिपीठ में पूजा-अर्चना कर हमनें भी अवर्णनीय आध्यात्मिक आनंद का अनुभव किया। 
 भारतीय संस्कृति की अनूठी परंपरा ---- *ज्ञान-सत्रों *की , लंबी सूची को नैमिषारण्य" अपने अँचल में समेटे हुए हैं ! नैमिषारण्य की पावन भूमि। नैमिषारण्य (नीमसार) का, भगवान ब्रह्मा, शिव, विष्णु, देवी सती, माँ ललिता और ऋषियों से जुड़ी हिंदू पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है। यह स्थान इस मान्यता के कारण अद्वितीय है कि यहाँ हिंदू देवी देवताओं व ऋषियों के मन्दिर हैं। यह हिंदुओं के सभी तीर्थस्थल केंद्रों में सबसे अधिक पवित्र माना जाता है। यहाँ भारतीय पूर्ववर्ती युगों के कई दर्शनीय स्थल सब ओर बिखरे हुए हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं -  
*चक्रतीर्थ : यह एक गोलाकार पवित्र सरोवर है। लोग इसमें स्नान कर परिक्रमा करते हैं। आप इसमें उतर जायें, फिर इसका अदभुत जलप्रवाह आपको अपने आप परिक्रमा कराता है। आपको लगेगा एक चक्कर और लगाया जाए। इसमें चक्रनुमा गोल घेरा है, जिसके अन्दर एवं बाहर जल है। हालांकि नहाने की व्यवस्था चक्र के बाहर ही है।
*श्रीराम जी की अश्वमेध यज्ञ-स्थली : नैमिषारण्य का प्राचीनतम उल्लेख वाल्मीकि रामायण के युद्ध-काण्ड की पुष्पिका में प्राप्त होता है। "वाल्मीकि-रामायण में 'नैमिष' नाम से उल्लिखित इस स्थान के बारे में कहा गया है कि श्री राम ने गोमती नदी के तट पर अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न किया था- 'ऋषियों के साथ लक्ष्मण को घोड़े की रक्षा के लिये नियुक्त करके रामचन्द्र जी सेना के साथ नैमिषारण्य के लिए प्रस्थान किया। पुष्पिका में उल्लेख है कि लव और कुश ने गोमती नदी के किनारे राम के अश्वमेध यज्ञ में सात दिनों में वाल्मीकि रचित रामायण महाकाव्य का गायन किया था।
" रामचरितमानस " में " गोस्वामी तुलसीदास जी " कहते हैं -" तीरथ वर नैमिष विख्याता ।
अति पुनीत साधक सिधि दाता ।।"  जनश्रुति के अनुसार  देवी सीता यहीं अपने पुत्रों को श्रीराम को सौंप कर  धरती में समा गयी थी , यह स्थान सीताकुंड कहलाता है।
*हनुमान गढ़ी: चक्रतीर्थ के ही पास स्थित इस मंदिर में हनुमान जी का मुख दक्षिण की ओर है इसलिए इसे दक्षिणेश्वर हनुमान मंदिर भी कहते हैं। यह वृहद आकार की पत्थर की बनी हुई मूर्ति है। हनुमान जी के कंधों पर श्रीराम और लक्ष्मणजी विराजमान हैं।कहा जाता है कि पाताल लोक में अहिरावण को परास्त करने के बाद हनुमान जी सबसे पहले यहीं पर प्रकट हुए थे।
*व्यास गद्दी :मान्यता है कि इसी पावन स्थान पर महर्षि व्यास ने वेद पुराण रचे । इसी स्थान पर ८४ हजार साधु-संतों ने तप किया। इसके समीप ही अति प्राचीन वट वृक्ष है।
*रुद्रावर्त धाम: शिव का यह स्थान हमें चमत्कारिक ही लगा |  इसका नाम है रुद्रावर्त धाम यह शिव जी का धाम नैमिषारण्य से ५  किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे से गाँव में स्थित है। यहाँ इस रुद्रावर्त धाम की ऐसी विशेषता है कि जिसने भी यहाँ का चमत्कार सुना वो यहाँ दर्शन हेतु आए बिना नहीं रह सकता। गोमती नदी के किनारे पर इस छोटे से कुण्ड में बालू के शिवलिंग बनते हैं सबसे बड़े चमत्कार की बात है कि इसमें श्रद्धा से डाले गए बेलपत्र, यहाँ उठने वाले रुद्र आवर्त  (घुमावदार भंवर) के जल में नीचे चले जाते हैं।हमनें भी यहाँ पांच फल इस कुण्ड में डाले उनमें से प्रसाद स्वरुप एक या दो फल ऊपर आ गए। अचंभे की बात यह भी थी कि इन आवर्तों में डाले गए सभी बेलपत्र नीचे जाने के बाद ऊपर नहीं आए | मान्यता है भगवान शंकर भक्तिभाव से चढ़ाए गए बेलपत्र व फल स्वीकार कर प्रसाद को जल के ऊपर तेरा देते हैं | इस अद्भुत दृश्य को रुद्रावर्त धाम में ही देखा जा सकता है। 
*दधीचि कुंड:नैमिषारण्य से लगभग 10 किमी दूर है पवित्र तीर्थ मिश्रिख। कथाओं के अनुसार, देवताओं ने ब्रह्मा जी से वृत्रासुर के विनाश के लिए मदद मांगी थी।ब्रह्मा जी के आदेशानुसार देवताओं नें तब महर्षि दधीचि से अनुरोध किया गया कि वो वज्र बनाने के लिए अपनी अस्थियां दान कर दें। अस्थियां दान करने से पहले महर्षि की इच्छानुकूल पवित्र नदियों का जल मिश्रित किया गया था। महर्षि ने इस सरोवर अर्थात मिश्रिख सरोवर में स्नान करने के पश्चात लोककल्याण के लिए अपनी देह का दान कर दिया था इस कथा को भारतीय जनमानस ने युगों से अपनी शक्ति बना कर सहेजा हुआ है |
दशाश्वमेध टीला
यहाँ एक टीले पर एक मंदिर में श्रीकृष्ण और पाण्डवों की मूर्तियां बनी हुई हैं।
पांडव किला
 महाभारत के अनुसार पांडवों नें इस तीर्थ-स्थल की यात्रा की थी। मान्यता है कि यहीं पर पाण्डवों ने महाभारत के उपरान्त आकर १२ वर्षों तक तपस्या की थी। जिससे पांडव किला कहते हैं ।
 द्वापर युग  में श्री बलराम जी यहां पधारे थे। भूल से उनके द्वारा रोमहर्षण सूत की मृत्यु हो गयी। बलराम जी ने उनके पुत्र उग्रश्रवा को वरदान दिया कि वे पुराणों के वक्ता होंगें और ऋषियों को सतानेवाले राक्षस बल्वल का भी  उन्होंने वध किया।संपूर्ण भारत की तीर्थयात्रा करके बलराम जी फिर नैमिषारण्य आये और यहां उन्होंने यज्ञ किया।
मार्कण्डेय पुराण में अनेक बार इस स्थान का उल्लेख ८८००० ऋषियों की तपःस्थली के रूप में आया है। वायु पुराण के माघ माहात्म्य तथा बृहद्धर्मपुराण, पूर्व-भाग के अनुसार इसके किसी गुप्त स्थल में आज भी ऋषियों के स्वाध्याय का अनुष्ठान चलता है। 
लोमहर्षण के पुत्र सौति उग्रश्रवा ने यहीं ऋषियों को पौराणिक कथाएं सुनायी थीं।
हिन्दी साहित्य के गौरव महाकवि नरोत्तम दास की जन्म-स्थली (बाड़ी) भी नैमिषारण्य के समीप ही स्थित है।
शौनकजी को इसी तीर्थ में सूतजी ने अठारह पुराणों की कथा सुनायी। हम मानते हैं कि शिक्षा एवं ज्ञानसत्रों की इस पुनीत स्थली के पास, आज भी सुनाने के लिए ,भारतीय इतिहास और संस्कृति की कई अप्रतिम कथाएं हैं बस उनको ठीक से खोज कर सामने लाने की ज़रूरत है |  
 भारतीय संस्कृति के ऐसे अनेक युगों के अतुलनीय सूत्रों के साक्षी  " नैमिषारण्य " की यात्रा सबको नए दृष्टिकोण प्रदान करने वाली , समसामयिक जिज्ञासाओं के उत्तर तक पहुंचने की दिशा दिखाने वाला एक अप्रतिम स्थान है !! इसलिए भारत के सतयुग के इस पावन तीर्थ पर सबको अवश्य ही आना चाहिए।

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