परम आनंद के क्षण के साक्षी हैं हम सब - - - - गौरवान्वित हैं।
इतिहास के अभूतपूर्व पलों का साक्षी होना हमारे जीवन का अप्रतिम अनुभव है क्योंकि अपने ब्रह्मलीन पूजनीय माता-पिता के सपनों को साकार देखना हमारा परम सौभाग्य है। उनके द्वारा भेजी गई श्रीराम-नाम वाली ईंटें भी अयोध्या जी के राममन्दिर की नींव में हैं - - - - ये आत्मगौरव हमें भावविह्वल करता है तो रामलला का बालस्वरूप बहुत सी भावनाओं को आंदोलित कर गया।
इस अतुलनीय भावविभोर करते क्षण को शब्दों में बांधने की सामर्थ्य हमारी लेखनी में नहीं है - - - - इसलिए हम संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस के शब्दों में कहेंगे - - - -
थके नयन रघुपति छबि देखें।
पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें ।। अधिक सनेहँ देह भै भोरी।
सरद ससिहि जनु चितव चकोरी ।।
अर्थात - - श्रीराम जी की छवि को नेत्र टकटकी लगाकर देखते रह गए। पलकों नें झपकना छोड़ दिया। शरीर ऐसे विह्वल हो गया जैसे शरद ऋतु के चन्द्रमा कोस देखकर चकोरी बेसुध हो जाती है।
सत्य यही है कि " गिरा अनयन नयन बिनु बानी" को चरितार्थ करता यह ऐतिहासिक समय हमारे जीवन की अमूल्य निधि है !!
श्रीरामलला की जय !
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