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बुधवार, 22 जुलाई 2009

******* खग्रास सूर्य–ग्रहण *******


खग्रास सूर्य–ग्रहण
२२ जुलाई २००९ का खग्रास सूर्य–ग्रहण एक ऐसी अविस्मरणीय खगोलीय घटना है जिसको देखने के लिए धरती को १२५ वर्षों का लम्बा इंतज़ार करना होगा । काले सूर्य की भोर के साथ उदित हुए इस आलौकिक दिन नें मुझे बाध्य किया है अपने भावों – विचारों को क़ागज़ पर उतार कर सहेजने के लिए । भगवान शंकर की पूजा – अराधना को समर्पित श्रावण मास की अमावस्या को पड़ने वाले इस पूर्ण सूर्य-ग्रहण को सिर्फ़ और सिर्फ़ शिव की नगरी काशी में ही सम्पूर्ण रूप में देखा जा सका जबकिहम सब जानते हैं कि कई अन्य नगरों में इसे देखने की समुचित व्यवस्था की गई थी ।चन्द्रमाँ की छाया से झाँकते ग्रहण की ओर बढ़ते सूर्य का स्वरूप ध्यान-मग्न शिव के अधखुले नेत्र सा लग रहा था । हीरे की अँगूठी में बदलता सूर्य आज अन्धकार पर विजय पाते अकम्पित मणि-दीप सा परम-सत्ता की पूजा में व्यस्त दिखा ।
सूर्य-ग्रहण वैज्ञानिक शोध-कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ अवसर देता हैआज अन्य शोधों के साथ यह भी जुड़ॆगा कि भारत के मध्य-प्रदेश में मऊ के कदोरिया स्थान पर ग्रहण-काल में पहले लाल और फिर पीली बारिश हुई ग्रहण के बाद वर्षा–जल का रंग सामान्य हो गया । इस समाचार ने मुझे बाध्य किया यह सोचने पर कि आज ग्रहण में श्याम- सूर्य के साथ आकाश पर सबसे सुन्दर व तेजस्वी प्रकाश था – शुक्र और वृहस्पति का । इसे भी सुखद संयोग ही कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति में शुक्र और वृहस्पति को क्रमश: लाल और पीले रंग से ही जोड़ा जाता है । आस्थाओं के स्तर पर जिन संदर्भों नें मुझे इस खग्रास सूर्य-ग्रहण से जोड़ा वो मेरे आज का सत्य है , आने वाला कल जिन अनुसंधानों को इससे जोड़ेगा वो भविष्य का सत्य होगा ।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

yes your description is very impressive and vision is very scientific. nageswar/ chennai