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शनिवार, 24 जनवरी 2009

उपहार २५ जनवरी २००९

आज ब्लाग पर अपने पहले जन्मदिन पर मेरी स्मृतियों में उभर आया है १९८६ की २५ जनवरी का दिन जब मैने पाया था जीवन का वो उपहार जिसकी मधुर कोमल ऊष्मा आज भी मेरे प्राणों को स्पन्दित कर रही है । उस क्षण - उस उपहार ने कुछ शब्दों को एक आकार देकर कविता में ढाला था आज उसी कविता से अपना जन्मदिन मनाने का मन है।............

मेरे नन्हे मुन्नों ने - - - -
उन नन्ही नन्ही हथेलियों में,
बन्द मुट्ठी की पहेलियों में,
मुझे चौंकाने की चाह से
उजले-उजले बेला के फूलों को
कस कर पकड़ रखा था
बडे जतन सॆ ऊँगलियों की कैद में जकड़ रखा था ।
जब बन्द मुट्ठी का तिलस्म खुला - -
वहाँ - - -फूल नहीं - - -
प्यार की गर्मी से पिघली
उजली सफ़ेद पंखुड़ियों की
प्यारी सी,मीठी सी सुगंध थी ।
बेला के फूल -छोटे-छोटे से फूल
उन नन्ही हथेलियों के जादू से
इतने विशाल,इतने मोहक हो गए
कि अब मेरी हर साँस के साथ
वो सुगन्ध वो प्यार मेरे पास है
मेरी ममता के पूरे आकाश में बिखरी
उस उपहार की निर्मल उजास है ।

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