
गंणतंत्रदिवस हम सब भारतवासियों को स्वाभिमान, आत्मगौरव और राष्ट्रप्रेम से सराबोर कर देता है । राष्ट्र के लिये समर्पित ह्र्र भारतीय के आत्मसम्मान को रेखॉकित करता है – गंणतंत्रदिवस । अध्यापन से मेरे हार्दिक जुडाव का एक अनुपम वरदान मुझे यह मिला है कि मेरे छात्र आज मेरे सबसे निस्वार्थ और निश्छ्ल साथी हैं । गंणतंत्र् दिवस के बधाई-संदेशों में, उनसे मिले संदेशों से उभरते गंणतंत्र् और गंण-नायकों संबंधी असमंजस ने ,मेरी सोच को इस पावन पवित्र दिन -वहाँ पहुँचा दिया है जहाँ एक भव्य द्वार खुल रहा है – उस गौरवशाली अतीत की ओर जिसमें सामने उस युग के पृष्ठ हैं जिसमें एक ओर धरती के कई भू-भाग अपने विकास के उषाकाल की प्रतीक्षा कर रहे थे तो दूसरी और हमारा प्यारा भारतवर्ष उस समय की उस उन्नत सभ्यता के रूप में स्थापित था जिसके प्रबुद्ध् जन अपने विचारों को भाषा के वर्णों –वाक्यों के साथ-साथ प्रतीकों में अभिव्यक्त कर रहे थे। वैदिक काल की समृद्ध् संस्कृति के ऐसे अनेकों प्रतीक आज भी भारत की ग्रामीण और शहरी सभ्यता का अंग हैं ।मेरा विषय यहाँ है – गंणतंत्र – । मैं अपनी अति साधारण बुद्धि का सहारा लेकर जब उस सभी जिज्ञासाओं का उत्तर देनेवाले द्वार के पार खोजती हूँ तो प्रतीक सामने आता है – गणपति - गणेश का । ऐतिहासिक प्रमाण हमें बताते हैं कि भारत में गंणराज्य की प्राचीन परंपरा रही है । शासन–तंत्र में गंणतंत्र का समर्थन करने वाले उस काल के चिंतकों –ऋषियों के सामने जब यह प्रश्न उठा होगा कि गंणराज्य का गणाधिपति कैसा हो ? तब चिंतन-मंथन के बाद स्थापित किया गया होगा –गणपति का प्रतीक । गंणपति का निर्माण किया तप और शक्ति की प्रतिनिधी- उमा नें , उसे सबसे संतुलित-बुद्धिमान प्राणी हाथी का शीश प्रदान किया – लोककल्याण के प्रतिनिधी – शिव नें ।लोकविश्रुत यह कथा भी “ इस विषय ” पर स्वयं प्रकाश डालती है परंतु यदि हम केवल स्थूल आकार की ही बात करें तो भी हम देखते हैं कि उन चिंतकों ने गंणपति को कान पंखे की तरह के दिए जो सदा हिलते रहते हैं ताकि किसी भी तरह की चाटुकारिता का प्रभाव उस पर ना पड़े । सूंड मिली इस कारण जिससे अपने गंणराज्य में चल रहे आँतरिक – बाह्य सभी षड़्यंत्रों को समय रहते दूर से ही भाँप सके और संकटपूर्ण् अवसरों में देशद्रोहियों व कठिनाईयों को उखाड़ कर ऐसे ही फेंक दे जैसे हाथी अपनी सूंड़ से विशालकाय वृक्षों को फेंकता है परंतु देशभक्तों को भी उसी प्रकार खोज ले जैसे हाथी सूंड़ से सूई को सहेज लेता है । ‘ लम्बोदर ” का प्रतीकात्मक अर्थ है – गहरे पेट का अर्थात सारे राज़ पचा जानेवाला। छिछले स्वभाव गंणाधिपति स्वयं तो नष्ट होता ही है गंणराज्य को भी विनाश के गड्ढे की और ले जाता है इसीलिए गंणपति को धैर्यवान –लंबोदर कहा गया । वाहन के रूप में उपस्थित मूषक भी यही दर्शाता है कि गंणराज्य की सत्ता को चुनौती देने वाले , राष्ट्र को नुकसान पहुँचाने वाले तत्वों पर आरूढ़ रहने की क्षमता रखने वाले – उनको नियंत्रित् करने वाले - गंणपति ही राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करने में सक्षम हैं । सत्ता के शीर्ष स्थानों पर यदि आज भी ऐसे अधिपति होंगे तो हमारा विशाल गंणतंत्र ऋद्धि-सिद्धि से परिपूर्ण होगा और देश् के सभी लोगों तक ‘ मोदक् ’ अर्थात आनंद का प्रसाद अवश्य पहुँचेगा ।
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