जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

शनिवार, 31 जनवरी 2009

ऋतुराज

बसंत ऋतुराज है - - -
किताबों में हज़ारों बार पढा है तुमने !
उसके रंगों,उसकी सुगन्ध को
क्या कभी ज़िन्दगी के पलों से जोड़ा है तुमने ?
तुम को .फुर्सत ना मिली - - काम की परेशानियों से
कलियों के होंठों पे ठहरे मोतियों को
कब ऊँगलियों के पोरों से चुना है तुमने ?
टेसू फूला, सरसों महकी या
अमलतास के झूमर में गर्मी के आने का रुक्का छिपा है
बसंती-पीले रंगों की इन नर्म-गर्म बारीकियों को
भूले से भी कभी परखा है तुमने ?
धरती नें बड़े नाज़ से
जिस मौसम को हाथों पे उठा रखा है
उसके आने की मदिर आहट को
क्या कभी भी महसूस किया है तुमने ?
मेरी पहचान तो बहुत पुरानी है उससे
मेरे आँगन को जो जाने कब से - -
गुनगुना कर महका गया है चुपचाप |
तभी तो - -ऋतुराज की सारी मादकता ,सारी मधुरिमा
मेरे घर की वासन्ती रंगोली में पाई है तुमने !

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।