आज बहुत दिनों बाद सावन की रिमझिम की आहटें दिल्ली में मेरे घर आँगन में बरसी हैं । बहुत प्रतीक्षा के बाद आज पीपल , जामुन , चम्पा- चमेली – रजनीगंधा और तुलसी के पत्ते बरसात में जी भर कर भीग रहे हैं हमारे मन का भी हर कोना भीगती मिट्टी सा भीग- भीग कर महकने लगा है । शब्दों में ये महक कितनी उभरेगी नहीं जानते पर लिखने की इच्छा को दबा नहीं सकते ।
* * * * * * * *
आज की बरसात नें ,
जो दर्पण धरती की प्यास को सौंपा है , उसमें ठहर गया है एक प्रतिबिम्ब
सावनी चम्पा का !
उसकी खुली – सिमटी बाँहों का !
जिसमें सूरज का बादलों की ओट से
झाँकता चेहरा - - कैद हो गया है ।
ठीक वैसे ही
जैसे कई-कई बार
तुमने , - - तुम्हारी यादों नें
मेरे चेहरे पर पुती
वक्त के हर हादसे की स्याही को,
अपने पारदर्शी उजालों से पोंछ
मुझे , सुनहले रंगों में नहलाकर
अपनी हज़ार-हज़ार बांहों में समेटा है , कुछ -कुछ ऐसे ही सहेजा है
सावनी चम्पा और सूरज को , अपने दर्पण में - - आज की बरसात नें !!!!
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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