वेनकुवर के इस शांत से इलाके में आज रात से ही वर्षा की फुहारें पड़ रही हैं । बेशक बारिश यहाँ ठंडक लेकर आती है पर सुबह का ये ठंडा मौसम हमारा मनभाता है - इस मौसम नें - मन की बात काग़ज़ पर उतार दी ।
******* शरारत ********
चिनार, देवदार, सरों के लम्बे ऊँचे पेड़ों के बीच से ,
खामोश हवाओं की सरसराती ,लहराती चूनर को थाम ,
मन का बनजारा पाँखी उड़ चला- - ऊँचे - बहुत ऊँचे !
छूने उस छोर को जहाँ चाह कर भी ये तन ना पहुँचे !
समन्दरों के गहरे ठंडे पानियों की परवाह किए बिना ,
पर्वतों की आकाश चीरती बर्फ़ीली चोटियों से डरे बिना ,
उफनती ,बलखाती नदियों की तेज़ चाल से लगाकर होड़ ,
मैदानों पर बिखरे फलों-फ़सलों के अम्बारों का लालच छोड़ ,
लम्बी दूरियों को , वक्त के फ़ासलों को - पल भर में तय कर ,
दूर - बहुत दूर - उड़ता हुआ -आ पहुँचा मन-पाँखी वो निडर ,
आम,जामुन,पीपल,तुलसी,बेला-चमेली से सजी अपनी बस्ती में ,
जहाँ पँछियों के सुरों की वंशी पर-राधा सी नाचती बयार मस्ती में ,
मन-पाँखी मगन हो गया - सुरों के सात रंगों के जादू में खो गया ,
माटी की सौंधी -सौंधी महक से बौराया सा गहरी नींद में सो गया ,
पर तभी नींद टूटी - हल्की फुहारों से - उड़ान थम गई ख़्वाहिशों की ,
देखा, इस छोर से उस किनारे तक - शरारतें एक सी हैं बारिशों की !!
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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2 टिप्पणियां:
बहुत हि सुन्दर
aapki is shararat ne fir se hamey us barish me bhigo diya
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