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बुधवार, 6 जुलाई 2011

माँ-ए- रंग दे बसंती चोला

* जानते हैं अभी स्वतंत्रता दिवस के लिए अभी एक माह से अधिक का समय है , परन्तु - - फिर भी - - बचपन के कच्चे मन की गीली मिट्टी में दबे देशप्रेम के बीज को अपनी कोमल फुहारों से थपथपा - थपथपा कर जिन बोलों ने साल-दर-साल सींच-सींच कर छतनार पेड़ में बदला उन बोलों में से इन बोलों की बहुत याद आ रही है - "दम निकले इस देश की ख़ातिर बीएस इतना अरमान है , एक बार इस राह पे मरना सौ जन्मों के समान है ,देख के वीरों की कुर्बानी अपना दिल भी बोला - मेरा रंग दे बसंती चोला , माँ-ए- रंग दे बसंती चोला ! ! " माँ ने तो अब भी अपने सपूतों का चोला बसंती रंग में रंग कर उनको भारत माता की माओवादियों से सुरक्षा के लिए भेजा था पर देश की रक्षा के लिए कुर्बान हुए वीरों को हमने क्या सम्मान दिया ?                                
देश के शहीदों को कूड़ा-कचरा ढोने वाली गाड़ी में ले जाया गया ! तर्क कई सामने रखे गए मसलन गाड़ी को धोकर फूलों से सजाया गया , शव-वाहनों की कमी आदि-आदि | मैंने अपने आप से एक ही प्रश्न कई बार किया ? क्या हम अपने बच्चों को, जानते -बूझते हुए ऐसी किसी गाड़ी में विद्यालय तक या बाज़ार तक भेजने की बात सोच भी सकते हैं ? फिर ! ! ! - - हमें प्रश्न का उत्तर जानने की कोई जिज्ञासा नही है -बस इस प्रश्न के मूल में छुपे कारण को जानने की गहन पीड़ा है | देश के वीरों की कुर्बानी के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर आज मेरा मन बहुत रोया | ये पीड़ा शहीदों के परिवारों की दयनीय अवस्था, बूढ़े माता-पिता के दुर्बल कंधों पर,शहीद हुए सपूत के परिवार के बोझ को पड़ते देखकर आक्रोश से भरा मेरा मन व्यथा से भर गया |                             
मेरे आक्रोश, मेरी पीड़ा को केवल तीन दिनों के अंतराल ने वितृष्णा और ग्लानि से भर दिया है | कैसी विरोधाभासीय मानसिकता में जी रहे है हम ! संचार-साधनों के विकास ने हमें शायद ऐसे भँवर में लाकर खड़ा कर दिया है जहां कोई भी भाव रस की पूर्णता तक पहुंचे उससे पहले ही लहरों का ज़ोरदार थपेड़ा सारे भावों को गडमड कर जाता है, तभी तो शहीदों के प्रति उपेक्षा भाव की पीड़ा पर ध्यान केन्द्रित हो इससे पहले ही विभिन्न दूरदर्शन चैनलों में होड़ लग गई, प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के अभाव में छूट गई युवती को अपनी खोजी पत्रकारिता का केंद्र बनाने की | एक पच्चीस वर्षीय युवक की हत्या के बाद शव के ३०० टुकड़े कर जला देने में सहायता देने वाली युवती को - कौन से       रियेलिटी शो में ५ करोड़ देने की बात चल रही है? वो भविष्य में क्या करने वाली है ? कौन से     निर्देशक उसे अपनी नई फिल्म में लेने को उत्सुक हैं ? आदि-आदि प्रश्नों के उत्तर पाने की होड़ को देख कर मैं उन परिवारों के बारे में सोच रही हूँ जिनके घर की रोज़ी-रोटी चलाने वाले की शहादत या उनके परिवारों को मिलने वाली आर्थिक सहायता की राशि व् भविष्य के बारे में सोच -विचार का     समय आज हमारे पास नही है | हमारा उपेक्षा पूर्ण व्यवहार कितने युवाओं में माँ-ए- रंग दे बसंती   चोला का भाव भर पायेगा - मेरी चिंता यह है |                                           

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