{आँखों के ऑपरेशन के कारण एक सिलसिला जो डायरी के पन्नों को ' देवगीत 'तक पहुँचाने की कोशिश का है उसी की अगली कड़ी में बीते हुए जितने दिन जोड़ पाऊँगी --जोड़ने का प्रयास करूँगी ---}
(१५ फरवरी*वसंत -पंचमी )
दूर तक नज़र कुछ खोज ना पाए ,ना सही,
पास से भी धुंधलका मिट ना पाए ,ना सही ।
खुशी के पलों में कितने सुर घोलता है सन्नाटा,
खुशी के पलों में कितने सुर घोलता है सन्नाटा,
मौन के पास अगर मुखर आवाज़ नही ,ना सही ।
बेपरवाह मौसम मोहताज रहा है कब किसका,
हवाओं की धुन बदलते ही उसका आना कहाँ छिपता है ।
गुलाबी जाड़ों की नर्म -गर्म हथेलियों की छुअन का असर ,
खिलखिलाते फूलों के दमक भरे चेहरों पर साफ़ दिखता है ।
पीली चूनर ओढ़ कर मेरी बिटिया नें आज सबको मिठास भरे पीले चावल खिलाए हैं ,
मुँह में घुलती केसर-इलाइची की सुगंध नें घरआँगन में वसंत के महकते संदेसे पहुँचाए हैं
पीली चूनर ओढ़ कर मेरी बिटिया नें आज सबको मिठास भरे पीले चावल खिलाए हैं ,
मुँह में घुलती केसर-इलाइची की सुगंध नें घरआँगन में वसंत के महकते संदेसे पहुँचाए हैं
क्या हुआ अगर हम ना जा पाए, ऋतुराज वसंत अपने रंग हम तक आप ही लेकर आए हैं !!
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