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शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिन्दी -दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

सभी हिन्दी भाषा बोलने,लिखने, पढ़ने और समझने वाले विश्व के हिन्दी  प्रेमियों को हिन्दी -दिवस  की हार्दिक शुभकामनाएँ।हाँ !मैं मानती हूँ कि किसी भी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को ,उसकी अस्मिता को जीवित रखने में उसकी भाषा का योगदान सर्वोपरि होता है ।अंग्रेज़ों ने इस सत्य को यहाँ आकर महसूस किया था तभी तो सन १८३५ में ही शिक्षा पद्धति के निर्धारक मेकॉले ने कहा था ,'मैं भारत के कोने-कोने में घूमा हूँ और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया जो भिखारी हो या चोर हो ।इस देश में मैनें इतनी धन- दौलत देखी है ,इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं कि मैं नहीं समझता , हम तब तक  कभी इस देश को जीत पायेंगे जब तक कि उसकी रीढ़ की हड्डी को नही तोड़ देते ,जो है इसकी आध्यात्मिक और साँस्कृतिक विरासत । इसलिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ कि हम इसकी पुरातन शिक्षा व्यवस्था ,इसकी संस्कृति को बदल डालें क्योंकि यदि भारतीय सोचने लगे कि जो भी विदेशी है ,अंग्रेज़ी है ,वह अच्छा है और उनकी अपनी चीज़ों से बेहतर है ,तो वे आत्मगौरव और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और ये देश वैसा  ही बन जायेंगा  जैसा  हम चाहते -हमारे प्रभुत्व को मानने वाला  दमित राष्ट्र । '   

हिन्दी दिवस मनाना  केवल औपचारिकता निभाने की परम्परा बन कर रह ना जाए इस पर हमें विचार करना होगा। इस सत्य को  जानना भी होगा और मानना भी कि  हिन्दी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आज तक सच्चे अर्थों में राष्ट्रभाषा या राजभाषा के स्थान पर आसीन नही हो पाई परन्तु जनभाषा  के रूप में उसको कोई भी उसके सिंहासन  से रंचमात्र भी नहीं डिगा पाया है। इस तथ्य को सरकारी आँकड़े भी पुष्ट करते हैं। ये बात आज सभी जानते हैं कि हिन्दी का  सम्मान हिन्दी प्रेमियो के कारण है। आज के समय में बस मेरी चिंता इस बात को लेकर अधिक है कि  कम्प्यूटर पर हिन्दी  उसकी अपनी लिपि देवनागरी में लिखी जाने की जगह रोमन में लिखी जा रही है।  रोमन लिपि में लिखी जाने वाली दुनिया की बोलियाँ और भाषाएँ आज अपनी पहचान बचाने के संकट से जूझ रही हैं इसलिए हमें समय रहते ही जाग जाना चाहिए।

सूचना -प्रोद्योगिकी के वर्तमान युग में ,हम अपने चारों और नज़र दौडाएं तो पायेंगे टी वी चैनल हों या विज्ञापन हिन्दी का बोलबाला सब ओर है । विश्व स्तर के सूचना प्रोद्योगिकी और न्यू मिडिया के सुपरिचित हस्ताक्षर 'श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच'के एक प्रकाशित लेख की पंक्तियों का उल्लेख करना मुझे यहाँ उपयुक्त लगता है । वे लिखते हैं- : " इन्फोर्मेशन टेक्नॉलाजी की शुरूआत भले ही अमेरिका में हुई हो ,भारत की मदद के बिना वह आगे नहीं बढ़ सकती थी । "गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एरिक श्मिट नें कुछ महीने पहले यह कह कर जबरदस्त हलचल मचा दी थी कि आने वाले पाँच से दस साल के भीतर भारत दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट बाज़ार बन जाएगा ।उन्होने ये भी कहा की कुछ बरसों में इंटरनेट पर जिन तीन भाषाओं का दबदबा होगा वे हैं -हिन्दी ,मैंडरिन और इंग्लिश । श्मिट के बयान से उन लोगों की आँखें खुल जानी चाहिए जो यह मानते हैं कि कम्प्यूटिंग का बुनियादी आधार इंग्लिश है, यह धारणा सिरे से गलत है । कम्प्यूटिंग की भाषा अंकों की भाषा है और उसमें भी कम्प्यूटर सिर्फ़ दो अंकों -एक और ज़ीरो को समझता है । भारत के सन्दर्भ में कहें तो आई टी के इस्तेमाल को हिन्दी और दूसरी भारतीय भाषाओं में ढलना ही होगा । यह अपरिहार्य है । वजह बहुत साफ़ है और वह यह कि हमारे पास संख्या बल है । हमारे पास पढ़े -लिखे ,समझदार और स्थानीय भाषा को अहमियत देने वाले लोगों की तादाद करोड़ों में है । - -इसे ही तकनीकी भाषा में  लोक्लाईज़ेशन कहते हैं । हमारे यहाँ भी कहावत है-जैसा देश वैसा भेष । आई टी के मामले में भी यह बात सौ फ़ीसदी लागू होती है ।' 

हिन्दी दिवस की शुभेच्छाओं में मेरी एक इच्छा ये भी है कि हम इस सच को मान लें कि हिंदी को लेकर कुछ लोगों में जो हीनता की भावना है वह  हीनता भाषा की नहीं हमारी अपनी दुविधा की है अत : हमें मान लेना चाहिए चाहिए कि       **************

                 'निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल ! ! '


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