
हरितालिका का अर्थ है "अलिका " अर्थात सखियों द्वारा जिसको परिवार से छिपा कर ले जाया गया हो ।
पार्वती को उनकी सखियाँ भगवान शिव को पति रूप में पाने की तपस्या हेतु ले गई थी इसी कारण
इस पावन दिन हरितालिका तीज का पर्व मनाया जाता है।
हरितालिका की कथा का वाचन भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्वजन्म अर्थात उमा रूप की स्मृति दिलाने के लिए किया था । इस दिन रखे गये व्रत का महात्म्य बताते हुए आदिदेव शिव द्वारा जो कथा सुनाई गई थी वह इस प्रकार है ; - -
हे गौरी ! पर्वतराज हिमाचल पुत्री उमा के रूप में आप ने बाल्यावस्था में हिमालय पर गंगा के तट पर घोर तप किया । इस अवधि में अन्न का त्याग कर , कई वर्षों तक पत्ते खाकर जीवनयापन करने के कारण सुपर्णा कहलाई । फिर पत्ते भी त्याग दिए और अपर्णा नाम से पुकारी जाने लगीं ।माघ की ठंड में जल में प्रवेश कर तप किया, वैशाख की झुलसाती गर्मी में पंचाग्नि में शरीर को तपाया और श्रावण की मूसलाधार वर्षा ऋतु खुले आकाश के नीचे बिताई । अपनी प्यारी पुत्री की कठिन कष्टदायी तपस्या को देखकर महाराजा हिमाचल अत्यंत दुखी और क्रोधित हुए ।
उमा की तपस्या और पिता का क्रोध देखकर महर्षि नारद तुम्हारे घर पधारे और बोले ,"हे ! गिरिराज मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ । आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वे उन से विवाह करना चाहते हैं ।उन्होंने आपकी राय जानने के लिए मुझे यहाँ भेजा है । " पर्वतराज इस प्रस्ताव से अति प्रसन्न हो गये । विवाह की स्वीकृति के बारे में सुन कर आप अत्यंत दुखी हो गईं । आपको व्यथित देखकर आपकी सखियों ने कारण पूछा तो आपने बताया , "मैनें सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है परन्तु पिताजी मेरा विवाह विष्णु जी से करना चाहते हैं । मैं विचित्र धर्म संकट में हूँ ,अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है ।" बात की गंभीरता को भाँप कर आपकी सखियों ने कहा ,"सखी ! प्राण त्यागने का हमें यहाँ कोई कारण दिखाई नही देता । अपना मनोवांछित पति पाने के लिए जिस सत्यनिष्ठा से आपने अब तक तपस्या की है उसके आगे भगवान शंकर को झुकना ही होगा बस निश्चय पूर्वक अपना संकल्प पूरा कीजिये । " घर में यह संभव नही था इसलिए सखियाँ आपको घनघोर वन में ले गईं । वहाँ पहुँच कर आप आस्था पूर्वक तपस्या में लीन रहने लगीं ।
घर में आपको ना पाकर सभी परिवार-जन पहले तो आपके अनिष्ट की संभावना से बड़े चिंतित हुए ।फिर आपके पिताजी को स्मरण आया कि मैनें तो विष्णु जी से पुत्री का विवाह स्वयं तय किया है ,अब यदि वे बारात लेकर आए और कन्या घर पर नही हुई तो सबका कितना अपमान होगा । यह सब विचार कर पर्वतराज नें सब दिशाओं में अपनी प्रिय पुत्री की खोज प्रारम्भ कर दी । इन सबसे अनभिज्ञ आप अपनी सहेलियों के साथ नदी तट पर एक गुफ़ा में मेरी अराधना में लीन थीं । भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हस्त नक्षत्र की उपस्थिति में आपने गंगातट की बालू से शिवलिंग का निर्माण किया ,रात भर जागरण कर मेरी स्तुति के गीत गाए। आपकी कठोर तपस्या नें मुझे बाध्य कर दिया और मैं वेश बदल कर शीघ्रता से आपकी तपस्या-स्थली पहुँच गया। अपने बारे में प्रचलित सभी नकारात्मक बातों का भय दिखला कर तथा विभिन्न प्रलोभनों के द्वारा भी जब मैं आपको शिवभक्ति से रंचमात्र भी डिगा नहीं पाया तब मैंने अपने वास्तविक रूप में आकर आपसे वरदान माँगने को कहा । अपनी तपस्या को फलीभूत पाकर आपने कहा ,"मैं सच्चे हृदय से पति रूप में आपका वरण कर चुकी हूँ । आप यदि मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो अपनी अर्द्धांगिनी के रूप में हमें स्वीकार कीजिए - इसी एक वरदान प्राप्ति की कामना से हम तप कर रहे हैं । " आपके अडिग आस्था -विशवास को देख "तथास्तु " कह कर मैं कैलाश लौट आया । प्रात: काल आपने व्रत का पारण किया ।
कुछ समय बाद महाराज हिमाचल अपने बन्धु -बांधवों सहित आपको खोजते-खोजते वहीं पहुंच गए । आपसे मिलकर सभी अत्यंत हर्षित हुए परन्तु आपकी दशा देख बहुत दुखी हुए । कारण पूछने पर आपने गृह-त्याग का कारण और अपनी तपस्या के फलीभूत होने का सम्पूर्ण वृतान्त सबको सुनाया और कहा ,"पिताजी ! आप मेरा विवाह विष्णु जी से करने का निर्णय ले चुके हैं और मैं अपने आराध्य को समर्पित हूँ । आपका अपमान न हो इसलिए आप कृपया मुझे यहीं छोड़ कर घर लौट जाएँ "पर्वतराज अपनी पुत्री की इच्छा को स्वीकार कर आप को घर ले गए । उचित समय का विचार कर उन्होंने पूरे विधि -विधान से हम दोनों का विवाह संस्कार किया ।
सम्पूर्ण कथा सुनाकर देवाधिदेव महादेव ने महादेवी से कहा ,"हे महादेवी पार्वती ! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया के व्रत को जो व्यक्ति भविष्य में पूर्ण निष्ठा से करेगा उसे मनोवांछित वर-प्राप्ति व सुखी दाम्पत्य-जीवन का वरदान प्राप्त होगा आप के संकल्प की पूर्ति सखियों द्वारा आपको हर लाने के कारण संभव हो पाई इसलिए यह दिन हरित + अलिका की तृतीया के नाम से प्रसिद्ध होगा । "
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