समस्त भारतीय मकर संक्रांति के पर्व को धूमधाम से मनाते आए हैं । मकर राशि में सूर्य के प्रवेश के कारण यह दिन मकर संक्रांति कहलाता है । उत्तरायण के सूर्य की ऊष्मा शिशिर ऋतु की कंपकंपाती ठंड से राहत देने लगती है। कृषि-प्रधान भारत की हर दिशा फसलों के पकने के उल्लास को, परमशक्ति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए ----संक्रान्ति , भोगाली, माघी बिहू ,खिचड़ी ,पोंगल आदि पावन पर्व मनाते हैं । पूर्वोत्तर के असम का बिहू हो या दक्षिणी छोर के तमिलनाड़ु का पोंगल ---बाकि सारे नृत्य-गीत -पकवान के साथ एक दिन गोवंश को समर्पित रहता है । घर के गाय -बैलों को सजा सँवार कर सत्कार किया जाता है । दक्षिण में बैलों को शिव के गण नंदी मानकर पूजा जाता है ,धन्यवाद ज्ञापित किया जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के कहने पर पोंगल के तीसरे दिन नंदी नें बैल रूप धरकर मनुष्यों को खेती करनी सिखाई थी ।
प्रकृति के हर रूप की उपासना करने वाले हम भारतवासी---देश की किसी भी दिशा में रहें हम एक ही हैं ,हमारे मूल संस्कार,हमारी जड़ें एक ही हैं ।
प्रकृति के हर रूप की उपासना करने वाले हम भारतवासी---देश की किसी भी दिशा में रहें हम एक ही हैं ,हमारे मूल संस्कार,हमारी जड़ें एक ही हैं ।
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