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रविवार, 12 जनवरी 2014

युगऋषि स्वामी विवेकानंद जी

       संतशिरोमणि श्री रामकृष्ण परमहंस जी के सुयोग्य शिष्य स्वामी विवेकानंद जी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे मानते थे। जो   सत्य है ,उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो ,दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो,ज्ञान स्वयमेव विद्य्मान है ,मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है ।  युगऋषि स्वामी विवेकानंद जी के जीवन-दर्शन नें विश्व जीवन को सन्मार्ग पर निडर होकर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाया। 

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