जाड़ों का मौसम

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सोमवार, 6 जनवरी 2014

आशीषों से मन-प्राण महकाता घर !!


पर्वत की घाटी में मेरा छोटा सा--प्यारा घर **
आँगन में सूरजमुखी के मुस्कराते सुनहलेचेहरे ,
नरगिस  की मीठी महक भरी हवाओं  की लहरें
चम्पा ,कृष्णकमल की कोमल लताओं के घेरे,
इन सब के बीच चित्रलिखितदेवभूमि सा पावन घर**
 आज सूना है..बहुत एकाकी ,ग़मगीन औ 'उदास है।
माता-पिता के ना होने से ज़िंदगीके गीत गुनगुनाता,
खुशनुमा ग़ज़ल सा मेरा घर, देता मर्सिये का एहसास है।।
स्याह काली घटायें सब ओर से घिर कर अँधेरा कर गई हैं,
वादी की ख़ामोश नज़रों को कोहरे के भीगेपन से भर गईहैं ।
ज़िन्दगी की तल्ख़ हकीक़त कैसा अजीब छल कर गई है ,
पलक झपकते ही लाखों कीभीड़ में हमेंगुमशुदा कर गई है।।
************ सिर्फ़--आपके आँखें मूँद लेने से,
आज कोई नहीं जो शहर से गाँव पहुंचाने वाली सड़क पर ,
बच्चों सा उछाह लिए बाट जोहता,बैचेन होइस छोर पर ,
सेब-अंजीर-खुमानी के पेड़ों तले करता चहलकदमी मोड़ पर।
मैं  आना चाहती हूँ ---- पर है कहाँ वो मेरा मनभाता घर  !
बाँसुरी के मीठे सुरों मेंगुनगुनाता ,ममत्व बरसाता घर !!
ख़त्म ना होने वाले किस्सों वाला, रातों को दिन बनाता घर !
फूलों की वादियों में बसा आशीषों से मन-प्राण महकाता घर !!
                      ****************


  

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