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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि एक ऐसा पावन पर्व जिसकी प्रतीक्षा हमें सबसे अधिक रहती है।
ये प्रतीक्षा कितने वर्ष पुरानी है ?
हमारी सोच के पास इसका कोई उत्तर नहीं है।
जाने क्यों ऐसा लगता है हम युगों  से इस पर्व को मनाते आये हैं । हम विश्वास
करते हैं इसलिये इसे पूर्वजन्मों के संस्कार ही मानते हैं ।आज फिर हमें हमारी परमश्रद्धेय अम्माजी(हमारी नानी सासजी ) बहुत याद आ रही हैं , 

वे हमारे हिमाचलहोने के कारण हमे जीवन पर्यन्त पार्वती बुलाती रही थी।यूँ भी हम बचपन से
शिवरात्रि को शिव-पार्वती का विवाह-उत्सव मनाते आ रहे हैं जन्मोत्सव नहीं
क्योंकि हमारी मान्यताओं में महादेव को आदिदेव और अजन्मा माना जाता है।
हिमाचल प्रदेश में महीनों पहले से इस विवाह की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैँ फिर
तीन दिन तक विवाहोत्सव चलता है जिसे सामूहिक रूप मनाया जाता है।
शिव-परिवार एक आदर्श-परिवार है ऐसा आदर्श-परिवार जिसमेँ पिता- यदि लोक
-कल्याण के लिए विषपान करते हैं तो माता-महिषासुर मर्दिनी और महाकाली का
रूप धारण कर दुष्टोँ का संहार कर जगन्नमाता कहलाती हैँ। गणपति-कार्तिकेय
जैसे सर्वगुण सम्पन्न पुत्र समाज में शुभता और मंगल के प्रसार के लिए कृतसंकल्प
 हैं। वृषभ-गाय-मयूर-मूषक के जन्मजात वैरभाव जहाँ कोई अस्तित्व नहीं रहता है।
 सबको परिवार ,समाज , प्राणिमात्र के प्रति समभाव रखने की प्रेरणा देता शिवरात्रि
का पावन पर्व हम सबको भी अपने दायित्वों को वहन करने की शक्ति प्रदान करे ।
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