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बुधवार, 4 मार्च 2015

ख़ुदग़र्ज़ दुनिया मेँ प्यार का पहला नाता

" माँ " ! पहला शब्द जो होंठों पे बेसाख़्ता आ जाता है,

 ख़ुदग़र्ज़ दुनिया में वही तो प्यार का पहला नाता है !

यादोँ की सड़क का सिमटता सा  छोर जहां जाता है,

देवदारों तले चलते क़दमों का कारवाँ ठहर जाता है !!

  गुज़रे वक़्त का मंज़र नज़रो में नहीं दिल में पनाह पाता है, 
  दो जहाँ की दूरियों से तेरी दुआओं का कारवाँ साथ निभाता है।  
   ठंडे पानी का गीत गाता झरना बेशक़ ऊँचे पहाड़ों से बहता आता था ,
   पर उसकी ख़ुशगवार मिठास का जादू माँ के हाथोँ ही जाग पाता था। 
  कितना घना हो उदासियों का हुजूम तेरे हाथोँ में पिघल ही जाता था, 
  खुशियों का उफ़नता, हदें तोड़ता सागर उन बाँहों में ठहराव पाता था।
  दुनिया की उलझनों का तिलिस्म तेरी कहानियों में खुल ही जाता था, 
  मेरी मंज़िले-मंसूब का हर रास्ता तेरी दानिशमंदी से निखार पाता था। 
  हर बार जन्मदिन पर उनके, ये अनसुलझा सवाल और उलझ जाता था ।
   माँ भी कभी  बच्ची थी ? मुत्तमयीन मन पहले ये कहाँ समझ पाता था। 
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