२८ दिसंबर २०१६
कैसे पौष की अमावस की ठिठुराने वाली ढलती दोपहर में ,
आग की लपटों से भी बरसता है कहर ,ये उस घड़ी जाना हमनें !!!!
चिता की आग धड़कनों को बर्फ़ सा जमा भी सकती है ,गोद खिलाई " बहन " को विदा करते समय ये सच पहचाना हमनें !!!!
हमारे आँसू ,सिसकियों , और दुआओं की बेअसर ताबीज़ें ,
उसके सिरहाने ही पड़े रहे और" वो "बेपरवाह लिपटी थी क़फ़न में !!!!
परों को फैलाकर उड़ गयी वह हंसिनी जाने किस दुनिया में ,
जिसे लौटा लाने के लिए ज़मीं -आसमां एक कर दिया था हम सबने !!!!
दिल के क़रीब थामे थे जो साथ , हमनें कसकर पूरी शिद्द्त से ,
बेरुख़ी से उसने हाथ छुड़ाकर झटका कि तन्हा कर दिया दमभर में !!!!
ख़ुशक़िस्मती की बहिश्त से कोई बेमुरव्वत लहर तूफ़ान सी उमड़ी ,
और पटक के छोड़ गई बेकसी के बेदर्द ज़ज़ीरे पर एक ही पल में !!!!
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