
हम सब ; अभी संघर्ष कर रहे हैं ऊषा के अचानक ही हम सब को सदा के लिए छोड़ कर जाने के सदमें से उबरने के लिए। **** और ये एक और बड़ा झटका ! यकीन किसी को भी नहीं हो रहा है। रात को एक -डेढ़ बजे तक अपने बिस्कुट खाकर सबको दम हिलाकर, प्यार करता आगे -पीछे घूमता मैक्सिमस ! सुबह चुपचाप निष्प्राण !! अन्य लोगों के बारे में हम कुछ नहीं कह सकते पर जो भी लोग किसी भी पशु -पक्षी को बचपन से पालते हैं वे जानते हैं कि उनके लिए वो प्राणी परिवार का सदस्य होता है। - - हमारा मैक्सिमस हमारे घर का ऐसा प्यारा-दुलारा बच्चा है जो जिस दिन से घर में आया- - सबको अपने प्यारभरे स्वभाव से अपना बनाता चला गया। कभी-कभी हैरानी होती थी कि हम मनुष्य भी आमतौर पर किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इसे अपनी परिस्थिति के अनुसार भूल जाते हैं - - पर " मैक्स " बच्चों , बड़ों में तो अंतर सदा ही रखता रहा - - वो तो इतना संवेदनशील था कि मेरी लंबी बीमारी में, कभी अपना मुँह बहुत ही नर्मी से हमारे बालों पर रखकर सहलाता , घरवालों के काम पर जाने के बाद हमारे पलंग के पास तब तक बैठा रहता जबतक कोई आ नहीं जाता। हमारे चेहरे या आवाज़ से उभरती पीड़ा को जाने कैसे समझता था और अपनी धीमी कूँ -कूँ की आवाज़ के साथ अपना हाथ हमारे ऊपर रख कर ऐसे तसल्ली देता कि हम सचमुच अपना दर्द भूल कर उसके इस व्यवहार पर उसे प्यार करने को बाध्य हो जाते। अब भी उसका वो चेहरा याद आ रहा है जब वो घर के हर बड़े छोटे की शिकायत हमसे करता और हमारे उनको डाँटने पर गर्वीले ढँग से उन्हें देखकर हमारे पास आकर दुलार दिखाता।
आज वसंत कुँज के श्मशानगृह में भीगी आँखों से अंतिम विदा देते समय हम सब बहुत व्यथित थे। पंडित जी ने अंतिम क्रिया कर गँगाजल डाला तो हम सबनें उसका शांत मुँह चूमा तो अपने पापा के शब्द याद आए , " अच्छे और सात्विक जीवन जीने वाले , असल में पथभ्रष्ट योगी होते हैं "
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