आज का सूरज आया है मुस्कुराता गुनगुनाता !
हमारी खिड़की से झाँक कर दिल से मुस्कुराता,
मकर संक्रांति के पूजा-आमंत्रण को स्वीकारता !!
माघी के अलसाए सर्द से चेहरे को सुरमई बनाता !!
सुबह - सुबह....
आज दिल्ली के शान्ति-पथ की सड़क ने - - - - ,
आज.... कोहरे के आग़ोश में सिमटी सी सड़क ने ,
आज.... कोहरे के आग़ोश में सिमटी सी सड़क ने ,
भर दी मेरी झोली - - - - ,
आज.... घने पेड़ों की कतार सी अपनी लंबी बाँहें ,
आज.... घने पेड़ों की कतार सी अपनी लंबी बाँहें ,
उसने अपनेपन से खोली ,
आज.... भीगी -भीगी सी सड़क नें ,
आज.... भीगी -भीगी सी सड़क नें ,
अपने बादलों से तैरते लफ्ज़ों से --
मेरे कानों में गुड़ की रेवड़ी सी मिठास घोली !
आज... जहां ज़मीं आसमाँ मिल रहे थे ..
आज... जहां ज़मीं आसमाँ मिल रहे थे ..
उस छोर को दिखा कर मुझ से बोली- - - -
देख ज़रा ! धुंध के मस्त झकोरे ,
देख ज़रा ! धुंध के मस्त झकोरे ,
पर्वतों का मौसम तेरे शहर में उतार लाए हैं !!
आज - - कोहरे की नायाब जादूगरी नें ,
आज - - कोहरे की नायाब जादूगरी नें ,
तेरी क़लम से ज़्यादा महकते ख्वाब जगाए हैं !!
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