मेरे सर्वाधिक प्रिय साहित्यकार " जयशंकर प्रसाद जी"
(३०जनवरी १८८९ - १५नवम्बर १९३७), हिन्दी के छायावादी युग
के प्रवर्तक चार प्रमुख स्तंभों में से अग्रगण्य हैं। उन्होंने हिंदी काव्य
में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली
के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई,
बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी
संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य
के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता
दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति
दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य
की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।
(३०जनवरी १८८९ - १५नवम्बर १९३७), हिन्दी के छायावादी युग
के प्रवर्तक चार प्रमुख स्तंभों में से अग्रगण्य हैं। उन्होंने हिंदी काव्य
में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली
के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई,
बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी
संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य
के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया। बाद के प्रगतिशील एवं नयी कविता
दोनों धाराओं के प्रमुख आलोचकों ने उसकी इस शक्तिमत्ता को स्वीकृति
दी। इसका एक अतिरिक्त प्रभाव यह भी हुआ कि खड़ीबोली हिन्दी काव्य
की निर्विवाद सिद्ध भाषा बन गयी।
आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनके कृतित्व का गौरव अक्षुण्ण है। वे एक युगप्रवर्तक लेखक थे जिन्होंने एक ही साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिंदी को गौरवान्वित होने योग्य कृतियाँ दीं। हिन्दी कवि, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार प्रसाद जी, नाटक लेखन में भारतेंदु जी के बाद, एक अलग धारा बहाने वाले युगप्रवर्तक नाटककार रहे। इनके नाटक आज भी पाठकों के लिए उत्प्रेरणा प्रदान करने में सक्षम हैं। , समसामयिक युग में उनकी अर्थगर्भिता तथा रंगमंचीय प्रासंगिकता निरंतर बढ़ी है।कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में भी उन्होंने कई कालजयी कृतियाँ दीं।
४८ वर्षो के जीवन काल में ; विविध रचनाओं के माध्यम से प्रसाद जी ने अपनी अद्वितीय लेखनी से भारतीय संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, मानवीय करुणा एवं भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों को उजागर किया है।
कोटि-कोटि नमन व श्रद्धासुमन इस अप्रतिम साहित्य शिल्पी को।
४८ वर्षो के जीवन काल में ; विविध रचनाओं के माध्यम से प्रसाद जी ने अपनी अद्वितीय लेखनी से भारतीय संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, मानवीय करुणा एवं भारतीय मनीषा के अनेकानेक गौरवपूर्ण पक्षों को उजागर किया है।
कोटि-कोटि नमन व श्रद्धासुमन इस अप्रतिम साहित्य शिल्पी को।
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