पैरिस में चित्रकला के क्षेत्र में अपनी तूलिका को आजमाने वाली अमृता शेरगिल के चित्रों में मैने आधुनिक युग की संवेदना, एकाकीपन का एहसास, एक अजब सी ज़िद्द के साथ-साथ भारतीय आध्यात्मिक आनंद की शिद्दत को भी महसूस किया है। ये सच है कि उन्होंने अपने कैनवास पर आनंद के बेपरवाह पलों को कम उतारा और बड़ी-बड़ी आँखों से झाँकते उदास से खालीपन को अधिक **** पर मेरे मन पर उनका असर गहरा है।
अमृता शेरगिल भारत आईं तो हिमाचल प्रदेश की ख़ूबसूरत राजधानी शिमला में जाकर बस गईं। यहाँ आने के बाद उनकी जीवनशैली और चित्रकारी में काफी बदलाव आया। पहाड़ी चित्रकारी की बसोहली शैली का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा । बाद में उनकी चित्रकारी में राजपूत शैली की झलक भी मिलती है। मौलिक भारतीय शैली के अजंता, एलोरा, कोचीन का मत्तंचेरी महल और मथुरा की मूर्तियाँ देखने के बाद उन्हें चित्रकारी के गुण-दोष दिखने लगे। भारत आकर यहाँ के सूक्ष्म-चित्रों से भी उनकी जान पहचान हुई।
१९३५ में उन्हें शिमला फाइन आर्ट सोसायटी की तरफ़ से सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से इन्कार कर दिया था। १९४० में बॉम्बे आर्ट सोसायटी की तरफ़ से पारितोषिक दिया गया। १९३५ के बाद भारत के सभी बड़े शहरों में उनकी चित्रकारी की प्रदर्शनियाँ लगाई गईं थीं। उनके चित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैयक्तिक और सार्वजनिक संग्रहालयों में आज भी सम्मिलित हैं। उनके चित्रों को राष्ट्रीय कला कोष घोषित किया गया है।
कोटि-कोटि नमन व श्रद्धासुमन समर्पित हैं - - - - अद्भुत क्षमताओं वाली कुशल चित्रकार अमृता शेरगिल को 🎉🖌️
१९३५ में उन्हें शिमला फाइन आर्ट सोसायटी की तरफ़ से सम्मान दिया गया जो उन्होंने लेने से इन्कार कर दिया था। १९४० में बॉम्बे आर्ट सोसायटी की तरफ़ से पारितोषिक दिया गया। १९३५ के बाद भारत के सभी बड़े शहरों में उनकी चित्रकारी की प्रदर्शनियाँ लगाई गईं थीं। उनके चित्र राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैयक्तिक और सार्वजनिक संग्रहालयों में आज भी सम्मिलित हैं। उनके चित्रों को राष्ट्रीय कला कोष घोषित किया गया है।
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