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मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

वीर-शिरोमणि " चंद्रशेखर आज़ाद !!













निर्भीक क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद ने यह प्रण किया था,
" मैं कभी भी जीवित अवस्था में पुलिस के हाथ नहीं आऊँगा।"
अंग्रेज़ों की पुलिस के मन में चंद्रशेखर आज़ाद का भय इतना
था कि किसी को भी उनके मृत शरीर के पास जाने तक की
हिम्मत नहीं थी। उनके निष्प्राण शरीर पर गोली चला कर,
पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही हथियारबंद पुलिस ने चंद्रशेखर
के निकट जाकर की मृत्यु की पुष्टि की।
यह सर्वविदित है कि फरवरी 1931 में पहली बार अमर क्रांतिवीर
गणेश शंकर विद्यार्थी जी के कहने पर आज़ाद इलाहाबाद में जवाहर
लाल नेहरू से मिलने आनंद भवन गए थे। नेहरू जी ने उनसे मिलने से
इंकार कर दिया था। इसके बाद वे वहां से एल्फ्रेड पार्क चले गए। इस
वक्‍त उनके साथ सुखदेव भी थे। वह यहां पर अपनी आगामी रणनीति
तैयार कर रहे थे, तभी किसी मुखबिर के कहने पर वहां पर अंग्रेजाें की
एक टुकड़ी ने उन्‍हें चारों तरफ से घेर लिया। आजाद ने तुरंत खतरा भांपते
हुए सुखदेव को वहां से सुरक्षित निकाल दिया और अंग्रेजों पर फायर कर
दिया। लेकिन जब उनके पास आखिरी एक गोली बची तो उन्‍होंने उससे
खुद के प्राण लेकर अपनी कथनी को सच साबित कर दिया था।
एल्फ्रेड पार्क में 27 फरवरी 1931 को उनके दिए इस बलिदान को - - - -
भारत कभी नहीं भुला पाएगा। आज़ादी के बाद इस उद्यान का नाम बदलकर
"चंद्रशेखर आजाद उद्यान" रखा गया। मध्य प्रदेश के जिस गांव में वे रहे थ
उसका धिमारपुरा नाम बदलकर आज़ादपुरा रखा गया।
भारतमाता के अमर सपूत वीर-शिरोमणि " चंद्रशेखर आज़ाद जी की पुण्यतिथि
पर आज, कृतज्ञ राष्ट्र उन को भावभीनी श्रद्धाँजलि अर्पित कर रहा है।
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