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बुधवार, 1 अगस्त 2018

भारत रत्न पुरुषोत्तमदास टण्डन जी ||












भारत रत्न पुरुषोत्तमदास टण्डन जी के विषय में  साहित्यकार
शिवपूजन सहाय ने लिखा है – ”टण्डनजी हिन्दी के लिए जिए
और हिन्दी के लिए मरे । हिन्दी उनकी जिन्दगी की सांस थी,
नेत्र की ज्योति थी, हिन्दी उनके मस्तिष्क की विचारधारा व
चिन्तनधारा थी ।”
उनके बहु आयामी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के कारण १५ अप्रैल
सन् १९४८ की संध्यावेला में सरयू तट पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ
महन्त देवरहा बाबा जी ने उनको 'राजर्षि` की उपाधि से अलंकृत
किया।ज्योतिर्मठ के माननीय शंकराचार्य महाराज जी  ने इसे शास्त्र
सम्मत स्वीकारा, काशी में १९४८ के अखिल भारतीय सांस्कृतिक
सम्मेलन के उपाधि वितरण समारोह में इसकी पुष्टि की। तब से यह
उपाधि उनके नाम के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी,स्वयं अलंकृत
हो रही है।
   भारतीय संस्कृति के परम पक्षधर राजर्षि रूढ़ियों और अंधविश्वासों

के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त बुराइयों एवं
कुप्रथाओं पर भी अपने दो टूक विचार व्यक्त किए।  राजर्षि टण्डनजी
स्वतंत्र भारत में पश्चिमी संस्कृति के अन्धानुकरण के विरोधी थे क्योंकि
वे भारतीय संस्कृति की महानता, उदारता एवं गौरव के सच्चे
हिमायती थे। वे भारतीय संस्कृति के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सहमत थे;
क्योंकि उनका मानना था कि जिस धर्म का निर्णय शास्त्र मात्र से किया
जाता है, वह उचित नहीं है ।
वे वर्तमान शिक्षा पद्धति में भी शिक्षक, शिक्षार्थी का दृष्टिकोण प्राचीन

आदर्शों को मानते हुए प्राचीन भारतीय गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के समर्थक
थे । विद्यार्थियों में बढ़ती हुई भौतिक विलासिता से दुखी हो जाया करते थे ।
राजर्षि टण्डन भारतीय भाषा हिन्दी के अनन्य भक्त थे । वे बालकृष्ण भट्ट
के हिन्दी प्रदीप तथा मालवीयजी के अभ्युदय में हिन्दी में  लेख भेजा करते
थे । टण्डनजी ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए अखिल हिन्दी साहित्य
सम्मेलन की स्थापना की । नेहरूजी की उर्दू- अंग्रेज़ी प्रयोग पर वे उनसे
वाद-विवाद कर बैठे थे । वे संस्कृत भाषा पर ज़ोर देते थे । सन् 1925 में
उन्होंने अंग्रेजी की जगह हिन्दुस्तानी भाषा का प्रस्ताव कांग्रेस निर्धारण
समिति के पास रखा था ।
यह सच है कि राजर्षि अपनी संस्कृति के परम भक्त और पोषक थे। वे

यह कहने में भी हिचक का अनुभव नहीं करते थे कि भारत की संस्कृति
को जीवित रखना देश प्रेम की कसौटी है।
अनन्य हिन्दी प्रेम, भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं की एकनिष्ठा, आस्था

और साधुओं के से वेष-विन्यास से सुसज्जित सुदृढ़ व्यक्तित्व के धनी
राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जी को हमारी विनम्र श्रद्धाँजलि ।
🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

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