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गुरुवार, 23 जनवरी 2020

नेता जी सुभाषचंद्र बोस :विनम्र श्रद्धासुमन ।

नमन 🙏कोटि-कोटि नमन व श्रद्धासुमन " नेताजी सुभाष चंद्र बोस "  की पावन जयंती पर 💐💐
स्मृतियों में आज ताज़ा कर लें---- '' तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आज़ादी दूंगा” भाषण को –जो नेताजी ने सन् 1944 में बर्मा में में दिया था।
**" दोस्तों ! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतीयों के सामने ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ या ‘ज्यादा बलिदान’ का कार्यक्रम पेश किया गया था। आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का हिसाब दूंगा और आने वाले साल की हमारी मांगें आपके सामने रखूंगा। लेकिन ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूँ कि हमारे पास आजादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है।-- ----- --- --- ---
इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आधार पर हमारा कार्य हमारी अनुपस्थिति में भी सुचारु रूप से और बिना किसी रूकावट के चलता रहे। साथियों एक साल पहले, जब मैंने आपके सामने कुछ मांगें रखी थीं, तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ दें तो मैं आपको एक ‘एक दूसरा मोर्चा’ दूंगा।
मैंने अपना वह वचन निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है। हमारी विजयी सेनाओं ने सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही हैं।
अब जो काम हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कमर कस लें। मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूं। जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते।
हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिये, जो हमें बहादुर व उचित कार्यो के लिए प्रेरित करें। सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुँच में दिखाई देती है।
आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएंगे, आपके लिए एक घातक गलती होगी। यहाँ मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिये। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है।
आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिये – मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके, एक शहीद की मौत मरने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून से बनाई जा सके।
साथियो! आज मैं आपसे एक ही चीज माँगता हूँ, सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून माँगता हूँ। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो दुश्मन ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो और मैं तुम से आजादी का वादा करता हूं।"**
🙏अपने प्रिय “नेताजी” के आह्वान पर आज़ाद हिंद फ़ौज में भरती होने आए सभी युवक- युवतियों नें एक स्वर में कहा कि 'हम अपना खून देने को तैयार हैं। “
सभा में बैठे हज़ारों लोग हामी भरते हुए प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने उमड़ पड़े।नेताजी ने उन्हें रोकते हुए कहा, "इस प्रतिज्ञा-पत्र पर साधारण स्याही से हस्ताक्षर नहीं करने हैं। वही आगे बढ़े जिसकी रगों में सच्चा भारतीय खून बहता हो, जिन्हें अपने प्राणों का मोह न हो, और जो आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व त्यागने को तैयार हो़ं।"
नेताजी की बात सुनकर सबसे पहले सत्रह भारतीय युवतियां आगे आईं और अपनी कमर पर लटकी छुरियां निकाल कर, झट से अपनी उंगलियों पर छुरियां चलाकर अपने रक्त से प्रतिज्ञा-पत्र पर हस्ताक्षर करने लगीं। इसके बाद - - - - महिलाओं के लिए “ रानी झांसी रेजिमेंट ” का गठन किया गया जिसका नेतृत्व किया कैप्टन लक्ष्मी सहगल जी नें। (उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया, लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा।)

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