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बुधवार, 15 जनवरी 2020

मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ।

भारतीय लोक-संस्कृति का राष्ट्रीय मांगलिक पर्व "मकर संक्रांति" (१५ जनवरी २०२०) का वैज्ञानिक संदर्भ, सूर्य के राशियों में भ्रमण से संबंधित है। वैज्ञानिक स्तर पर यह पर्व एक महान खगोलीय घटना है जो सूर्यदेव के उत्तरायण में प्रवेश के कारण यह धरती पर महत्वपूर्ण परिवर्तन का सूचक है। सूर्य छह माह दक्षिणायन में और छह माह उत्तरायण में रहता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मकर राशि में सूर्य के प्रवेश की संक्रांति है। संक्रांति का अर्थ है परिवर्तन का समय। संक्रांति उस काल को या तिथि को कहते हैं जब सूर्य एक राशि में भ्रमण पूर्ण कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है। इसे पुण्यकाल माना जाता है। 
हम सब जानते हैं कि महाभारत युग के महानायक भीष्म पितामह शारीरिक रूप से क्षत-विक्षत होकर भी शर-शैया पर लेटकर प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश का इंतजार करते रहे थे।      
मकर संक्रांति की पौराणिक मान्यता यह है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भारतीय संस्कृति में सूर्य को ऊर्जा ,प्रकाश, ज्ञान और परमार्थी व्यक्तित्व का प्रतीक माना गया है। मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है। मकर संक्रांति के दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक पर्यावरण अधिक चैतन्य रहता है, यानि पर्यावरण में दिव्य जागरूकता होती है , इसलिए जो लोग अपने आध्यात्मिक पक्ष की उन्नति की कामना करते हैं वे सृष्टि के इस चैतन्य स्वरूप की उपासना करते हैं। 
संपूर्ण भारत में मकर संक्रान्ति,लोहड़ी, माघी, माघो-साज़्ज़ो, ताइ पोंगल,भोगाली बिहु ,उत्तरायण, शिशिर सेंक्रात, खिचड़ी, 
पौष संक्रान्ति, मकर संक्रमण,ताइ पोंगल, शिशुर सेक्रांत,आदि नामों से मनाई जाती है। 
दक्षिण एशिया के राष्ट्रों बांग्लादेश में पौष संक्रान्ति, नेपाल-माघे संक्रान्ति या 'खिचड़ी संक्रान्ति', थाईलैण्ड- सोंगकरन,म्यांमार-थिंयान, लाओस -पि मा लाओ, कम्बोडिया - मोहा संगक्रान, श्रीलंका - पोंगल, उझवर तिरुनल आदि नामों से इस पर्व को मनाते हैं। 
वास्तव में भारतीय कृषिप्रधान संस्कृति में भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से इस पर्व को मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर, सदैव लोगों पर अपनी अनुकम्पा बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को नई फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।
मकर संक्रांति को मुख्य रूप से "स्नान एवं दान का पर्व" माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के बालकांड में लिखा है ----
'माघ मकर गति रवि जब होई, 
तीरथपतिहिं आवहि सब कोई ।' 
 इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है। माघ मेले का स्नान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। गंगा-स्नान रामेश्वरम, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को पूज्य व्यक्तियों को दान में दिया जाता है। इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है। इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी, गुड़, तिल आदि दान देने का अत्यधिक महत्व होता है।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार, गुड़ को सूर्य का, तिल को शनि का चावल को चंद्रमा का प्रतीक, उड़द दाल व तिल को (तेल का मूल होने के कारण),शनि का और हरी सब्जियां का संबंध बुध से माना जाता है इसलिए कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी व गुड़ -तिल से बने खाद्यान्न खाने से इन सभी ग्रहों की स्थिति मज़बूत होती है। 
इस वर्ष अर्थात सन् २०२० में वैदिक गणित और हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य का मकर राशि में प्रवेश १४ जनवरी की रात्रि २बजकर ८ मिनट पर होगा। (१४जनवरी को पूरे दिन सूर्य धनु राशि में ही रहेगा) १४ जनवरी बीतने पर (रात २बजकर ८) सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा जिस कारण मकर संक्रांति का पुण्य काल १५ जनवरी को ही होगा। "मकर संक्रांति" का पावन पर्व
लोकजीवन में शुभता का प्रकाश लाए। 
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