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सोमवार, 31 अगस्त 2020

एक आज़ाद रूह : अमृता प्रीतम !!

३१ अगस्त,....अपने लफ़्जों की जादूगरी से शाहकार रचने वाली "अमृता प्रीतम जी" हम आपकी १०१ वीं  सालगिरह मना रहे हैं
📃🖋️क़लम की मल्लिका का जन्मदिन भी क़लम से ही मनाएंगे!!!!
'रसीदी टिकट' नाम से अपनी आत्मकथा में 'कई घटनाएं जब घट रही होती हैं.... अभी-अभी लगे ज़ख्मों सी तब उनकी कसक अक्षरों में उतर आती है '  लिखने वाली अमृता जी !!  कुल मिलाकर लगभग सौ पुस्तकें लिखने वाली.. कवयित्री, उपन्यासकार, लेखिका....''अमृता प्रीतम जी '' का जन्मदिवस है। 
२००४ में पद्म विभूषण, १९६९में पद्मश्री, १९८२ में ज्ञानपीठ पुरस्कार, १९५६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार १९५७ में पंजाब भाषा विभाग के और १९८८ में बल्गारिया वैरोव के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अमृता जी की कृतियों का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है ।
“मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी और क्या उपन्यास, मैं जानती हूं, एक नाजायज़ बच्चे की तरह हैं। मेरी दुनिया की हक़ीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उनके वर्जित मेल से यह सब रचनाएं पैदा हुईं। जानती हूं, एक नाजायज़ बच्चे की किस्मत इसकी किस्मत है और इसे सारी उम्र अपने साहित्यिक समाज के माथे के बल भुगतने हैं ।- -  मन का सपना क्या था, इसकी व्याख्या में जाने की आवश्यकता नहीं है। यह कम्बख़्त बहुत हसीन होगा, निजी जिन्दगी से लेकर कुल आलम की बेहतरी तक की बातें करता होगा, तब भी हक़ीकत अपनी औकात को भूलकर उससे इश्क कर बैठी और उससे जो रचनाएं पैदा हुईं , हमेशा कुछ कागजों में लावारिस भटकती रहीं…”
 अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ का यह एक अंश, जो उनके ही शब्दों में उनकी "समूची जीवनी का सार है! "
वे जानती थीं कि उनके नारी रूप को यहाँ मुक्त आकाश में अपनी मर्ज़ी से परवाज़ की इजाज़त समाज के ठेकेदार नहीं देंगे पर 'कुकनूस की नस्ल' के लेखक तो  आग में जलने के बाद उसी राख से फिर ज़िंदा हो जाते हैं - - सो हमारी अमृता जी भी ज़िंदगी को भरपूर जीती रहीं। अपनी क़लम से सिर्फ़ ज़िंदगी को किताबों की सूरत में सबके सामने लाती रहीं।
आज इमरोज़ जी के इन शब्दों को याद करते हुए कि 
 " उन्होंने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं छोड़ा है " 
हम उनके जन्मदिन पर, उनकी कालजयी रचनाओं को पढ़ कर, उनके '' नदी, सागर और सीपियाँ " (जिस पर कादंबरी फ़िल्म बनी) उपन्यास  की ख़ूबसूरत नज्म के द्वारा विनम्र श्रद्धा सुमन काव्याँजलि के रूप में समर्पित कर रहे हैं !!
उनके साहित्य को पढ़ने और उसे महसूस करने के कारण हमनें कई बार, अगस्त के इसी दिन - - पारिजात से महकते उनके घर के बाहर खड़े होकर उनकी पूरी ईमानदारी और शिद्दत से ज़िन्दगी जीने के जज़्बे को नमन किया है । आज वो घर नहीं तो क्या ? सच्चे लेखक तो अपनी क़लम के बनाए घरों में हमेशा ज़िन्दा रहते हैं..... वे तो यूँ भी..... अमृता..... हैं ! 
पूरी शिद्दत से ज़िंदगी जीने वालों की कैफ़ियत उन्होंने यूँ बयान की - - -  "क़लम नें आज गीतों का काफ़िया तोड़ दिया,
मेरा इश्क ये आज किस मुकाम पर आ गया!
उठो, अपने घड़े से पानी का एक कटोरा दो,
राह के हादसे मैं इस पानी से धो लूंगी...." 
 और....
 उनके हर बयान को शिद्दत से महसूस करने वाले  हम ; उनकी क़लम की जादूगरी के लिए बेसाख़्ता कह उठे - - - - 
            अमृता की क़लम 
उसकी क़लम की सच्चाई भी कितनी
अजीब है ! 
बगावती तेवर लिए खड़ी है, पर दिल के क़रीब है !! 
ज़िंदगी की ग़ज़ल के काफ़िए तो बहुतों
ने जोड़े हैं ! 
मगर इस पुख़्तगी से कब,किसने रदीफ़
यूं तोड़े हैं !! 
उसनें काग़ज़ो पर बिखेरे काले मोतियों के जो हार हैं ! 
उनकी नायाब रौशनी अंधेरों में दिखाती हमें जीने का सार है !! 
 📚🖋️📚🖋️📚🖋️💐 🙏स्वर्णअनिल....🖋️

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