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शनिवार, 22 जनवरी 2022

🇮🇳 स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना अज़ीज़न बाई।

🇮🇳 भारतीय स्वतंत्रता का अमृत-महोत्सव 🌷
भारतीय स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाली वीरांगना अज़ीज़न के जन्मदिवस (२२जनवरी१८२४) को, कृतज्ञ श्रद्धाँजलि 🙏🌷🌷🌷🌷
जिसका पुण्य तेज हर दिन, योद्धा शूरवीर बन जाता था! 
उसकी घुंघरु की झनकार से, शत्रु का रक्त भी जम जाता था !!
अजीजन के नृत्य-संगीत की प्रसिद्धि और ब्रिटिश सैनिकों के उसके पास आने-जाने की सूचना और भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों के प्रति उसके आक्रोश के कारण पुरुष वेश धारण कर अंग्रेजों से बदला लेने की उसके विद्रोही तेवरों की सूचना तात्या टोपे जी को मिली तो उन्होंने अजीजन बाई को होलिका दहन पर बिठूर आने का न्योता दिया। अजीजन बाई ने उनका आमंत्रण स्वीकार कर लिया। उन्होंने होलिका दहन के दिन अपने नृत्य से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया । तात्या जब उन्हें पुरस्कार स्वरूप धन देने लगे, तो अजीजन बोलीं कि अगर कुछ देना है, तो अपनी सेना के सिपाही की वर्दी दे दें। यह सुनकर तात्या टोपे प्रसन्न हो गए और उन्होेंने गुप्तचर के रूप में अजीजन को अपनी टोली में शामिल कर लिया।
अजीजन बाई ने होली मिलन के रूप में मूलगंज में विशेष नृत्य कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें सिर्फ अंग्रेज अधिकारियों को ही बुलाया। वहां पर  क्रांतिकारी पहले से ही घात लगाए बैठे थे। अंग्रेजों के आते ही उन्होंने धावा बोल दिया और उन्हें मौत के घाट सुला दिया।
नाना साहब ने अजीजन से राखी बंधवा कर उन्हें अपनी धर्म बहन बनाया था । अजीजन बाई ने अपनी सारी संपत्ति स्वतंत्रता संग्राम के लिए नाना साहब को दान कर दी थी।
अजीजन बाई ने अपनी महिला साथियों के साथ मिलकर 'मस्तानी टोली' बनाई और उन्हें युद्ध कला का प्रशिक्षण दिया। यह टोली दिन में वेष बदल कर अंग्रेजों से मोर्चा लेती थी और रात में छावनी में नृत्य प्रदर्शन करके वहां से गुप्त सूचनाएं एकत्र करके नाना साहब तक पहुंचाती थी। इसके साथ युद्ध में घायल सैनिकों की सेवा तथा भोजन आदि पहुंचाने का काम भी वे सब कुशलतापूर्वक करती थीं। 
अजीजन की प्रेरणा से अंग्रेजी सेना में काम कर रहे हजारों भारतीय सैनिक अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध नाना साहेब की सेना में सम्मिलित हुए। उनकी मदद से नाना साहेब ने कानुपर से अंग्रेजों को उखाड़ फेंका और ८ जुलाई १८५७ में स्वतंत्र पेशवा घोषित कर दिये गये।
परंतु १७ जुलाई को जनरल हैवलाक अपनी विशाल सेना लेकर कानपुर पहुँच गया। उसने कुछ विश्वासघातियों की मदद से नाना साहेब की विजय को पराजय में बदल दिया। नाना साहब तो वहां से बच कर निकलने में सफल हो गये, परंतु अजीजन अंग्रेजों की कैद में आ गयीं।
जनरल हैवलाक ने क्रांतिकारियों का पता बताने के बदले में उन्हें प्राण दान देने की शर्त रखी पर राष्ट्रसेवा को समर्पित अजीजन ने,अंग्रेजों की गोलियों का निर्भीक होकर सामना किया।
देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बलिवेदी पर हंसते-हंसते हुए कुर्बान होने वाली भारत माता कीअमर बेटी अजीजन बाई का नाम चाहे उपनिवेशवादी मानसिकता के गुलामों नें इतिहास के पृष्ठों से मिटाने के लिए कितने भी प्रयास किए। परंतु लोक-संस्कृति अपने नायक - नायिकाओं को कभी नहीं भुलाती। कानपुर की साधारण सी अज़ीज़न के असाधारण राष्ट्रप्रेम नें उसे अपने लोकगीतों में निरंतर जीवित रखा है। लोक-मानस नें अपनी इस अद्वितीय योद्धा को भुलाया नहीं वरन् अपनी लोकवाणी अवधी के इस गीत में उस क्रांति की ज्वाला को अमर कर दिया है:-
”फौजी टोपे से मिली अजीजन
हमहूँ चलब मैदान मा। 
बहू-बेटिन कै इज्जत लूटैं
काटि फैंकब मैदान मा। 
अइसन राच्छस बसै न पइहैं
मारि देब घमसान मा। 
भेद बताउब अंग्रेजन कै
जेतना अपनी जान मा। 
भेद खुला तउ कटीं अजीजन
गईं धरती से असमान मा।। ”
अर्थात अजीजन बाई स्वातंत्र्य-युद्ध के लिए लड़ने को तैयार होकर वीर सेनानी तात्या टोपे से मिलीं। युद्ध के मैदान में, फौज में लड़ने का अनुरोध किया। उस वीरांगना ने कहा कि ये अंग्रेज हिन्दुस्तानी बहू-बेटियों की इज्जत लूटते हैं, इन्हें मैं मैदान में काट कर फेंकू दूंगी। जब घमासान युद्ध होगा, ऐसे राक्षसों को बच कर जाने नहीं दूंगी, घमासान युद्ध में उन्हें मार डालूंगी। तात्या ने उनसे कहा कि मुझे अंग्रेजों का भेद बताइए। उन्होंने कहा कि जितना भी मेरी जानकारी में होगा, अंग्रेजों का सारा भेद मैं आपको बताऊंगी। फिर एक दिन अजीजन का भेद अंग्रेजों के सामने खुल गया। अंग्रेज़ों द्वारा वे काट डाली गयीं। इस धरती से उठ कर वे दिव्य आकाश में चली गयीं।
स्वतंत्रता की ज्योति को अपनी लगभग ३४वर्ष की अल्पायु में ही, अपनी जीवन ज्योति देकर प्रज्जवलित रखनेवाली भारतीय वीरांगना की स्मृतियों को कोटि-कोटि नमन व विनम्र श्रद्धासुमन    🔥🔥🔥🔥स्वर्णअनिल

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