द्वीप से एकाकी मन पर,
आज समंदर का ज़ोर है!
विधना!कैसे सुझाई देगा,
अब कहाँ कोई ठौर है !!
🇮🇳 माननीय प्रधानमंत्री जी की शुभकामनाओं के लिए कृतज्ञतापूर्ण विनम्र धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🙏
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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